हेलों दोस्तों नमस्कार आज का पोस्ट में बहुत ही महत्वपूर्ण है। जो है ( Vartman Samaj Me Nari ki Sthiti ) वर्तमान में नारी की स्थिति । गृहस्थीरूपी रथ के दो पहिये हैं – नर और नारी । इन दोनों के सहयोग से ही गृहस्थ जीवन सफल होता है। इसमें भी नारी का घर के अन्दर और पुरूष का घर के बाहर विशेष महत्व है। फलतः प्राचीन काल में ऋषियों ने नारी को अतीव आदर की दृष्टि से देखा।
नारी पुरूष की सहधर्मिणी तो ही है, वह मित्र के सदृश परामर्शदात्री, सचिव के सदृश सहायिका, माता के सदृश उसके ऊपर अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाली और सेविका के सदृश उसकी सेवा करने वाली है।फिर भारत में नारी की स्थिति एक समान न रहकर बड़ें उतार – चढ़ावों से गुजरी है, जिसका विश्लेषण वर्तमान भारतीय समाज को समुचित दिशा देने के लिए आवश्यक है।
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भारतीय नारी का बीती हुयी समय ( Bhartiy Nari Ka Biti Huyi Samay )
वेदों और उपनिषंदों के काल में नारी को पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त थी। वह पुरूष के समान विद्यार्जन कर विद्वत्सभाओं में शास्त्रार्थ करती थी। महाराजा जनक की सभा में हुआ याज्ञवल्क्य – गार्गी शास्त्रार्थ प्रसिद्ध है। मण्डन मिश्र की धर्मपत्नी भारती अपने काल की अत्यधिक विख्यात विदुषी थी, जिन्होंने अपने दिग्गज वि्दवान पति की पराजय के बाद स्वयं आदि शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया ।
यही नहीं स्त्रियाँ युद्ध – भूमि में भी जाती थी। इसके लिए कैकेयी का उदाहरण प्रसिद्ध है। उस काल में नारी को अविवाहित रहने या स्वेच्छा से विवाह करने का पूरा अधिकार था। कन्याओं का विवाह उनके पूर्ण यौवनसम्पन्न होने पर उनकी इच्छा व पसन्द के अनुसार ही होता था, जिससे वे अपने भले – बुरे का निर्णय स्वयं कर सके।
मध्यकाल में भारतीय नारी ( Madhykal Me Bhartiy Naree )
मध्यकाल में नारी की स्थिति अत्यधिक शोचनीय हो गयी, क्योकि मुसलमानोें के आक्रमण से हिन्दू – समाज का मूल ढ़ाँचा चरमरा गया और वे परतन्त्र होकर मुसलमान शासकों का अनुकरण करने लगाे। मुसलमानों के लिए स्त्री मात्र भोग – विलास और वासना – तृप्ति की वस्तु थी। फलतः लड़कियों को विद्याल में भेजकर पढ़ाना सम्भव न रहा।
हिन्दुओं में बाल – विवाह का प्रचलन हुआ, जिससे लड़की छोटी आयु में ही ब्याही जाकर अपने घर चली जाए। परदा – प्रथा का प्रचलन हुआ और नही घर में ही बन्द कर दी गयी। युद्ध में पतियों के पराजित होने पर यवनों के हाथ न पड़ने के लिए नारियों ने अग्नि का आलिंगन करना शुरू किया, जिससे सती – प्रथा का प्रचलन हुआ।
आधुनिक युग में नारी
आधुनिक युग में अंग्रेजी के सम्पर्क से भारतीयों में नारी – स्वातन्त्र की चेतना जागी। उन्नीसवीं शताब्दी में भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ सामाजिक आन्दोलन का भी सूत्रपात हुआ । राजा राममोहन राय और महर्षि दयानन्द जी ने समाज – सुधार की दिशा में बड़ा काम किया । सती – प्रथा कानून द्वारा बन्द करायी गयी और बाल – बिवाह पर रोक लगी । आगे चलकर महात्मा गाँधी ने भी स्त्री – सुधार की दिशा में बहुत काम किया । नारी की दीन – हीन दशा के विरूद्ध पन्त का कवि ह्दय आक्रोश प्रकट कर उठता है।
मुक्त करो नारी को मानव
चिरबन्दिनी नारी को।
आज नारीयों को पुरूषों के समान अधिकार प्राप्त है। उन्हें उनकी योग्यतानुसार आर्थिक स्वतन्त्रता भी मिली हुई है। स्वतन्त्र भारत में आज नारी किसी भी पद अथवा स्थान को प्राप्त करने से वंचित नहीं। धनोर्जान के लिए वह आजीविका का कोई भी साधन अपनाने के लिए स्वतन्त्र है। फलतः स्त्रियाँ अध्यापिका डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, वकील, जज, प्रशासनिक अधिकारी ही नहीं, अपितु पुलिस में नीचे से ऊपर तक विभिन्न पदों पर कार्य कर रहीं है।
स्त्रियों ने आज उस रूढ़ धारणा को तोड़ दिया है कि कुछ सेवाएँ पूर्णतः पुरूषोचित होने से स्त्रियों के बूते की नही। आज नारियाँ विदेशों में राजदूत, प्रदेशों की गवर्नर, विधायिकाएँ या संसद सदस्याएँ, प्रदेश अथवा केन्द्र में मन्त्री आदि सभी कुछ हैं।
भारत जैसे विशाल देश का प्रधानमन्त्रित्व तक एक नारी कर गयी, यह देख चकित रह जाना पड़ता है। श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित ने तो संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्षता कर सबकों दाँतों तले अंगुली दबवा दी। इतना ही नही, नारी को आर्थिक स्वतन्त्रता दिलाने के लिए उसे कानून द्वारा पिता एवं पति की सम्पत्ति में भी भाग प्रदान किया गया हैं।
आज स्त्रियों को हर प्रकार की उच्चतम शिक्षा की सुविधा प्राप्त है। बाल- मनोविज्ञान, पाकशास्त्र, गृह – शिल्प, घरेलू चिकित्सा, शरीर – विज्ञान, गृह-परिचार्या आदि के अतिरिक्त विभिन्न ललित कलाओं – जैसे – संगीत, नृत्य, चित्रकला, छायांकन आदि में विशेष दक्षता प्राप्त करने के साथ – साथ वाणिज्य और विज्ञान के क्षेत्रों में भी वे उच्च शिक्षा प्राप्त कन कर रही है।
स्वयं स्त्रियों में भी अब सामाजिक चेतना जाग उठी है। प्रबुद्ध नारियाँ अपनी दुर्दशा के प्रति सचेत हैं और उसके सुधार में दन्तचित्त भी। अनेक नारियाँ समाज – सेविकाओं के रूप में कार्यरत है। आशा है कि वे भारत की वर्तमान समस्याओं जैसे – भुखमरी, बेकारी, महँगाई, दहेज – प्रथा आदि के सुलझाने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी।
पाश्चात्य प्रभाव एवं जीवन – शैली में परिवर्तन
किन्तु वर्तमान में एक चिन्ताजनक प्रवृति भी नारियों में बढ़ती है, जो पश्चिम की भौतिकवादी सभ्यता का प्रभाव है। अंग्रेजी शिक्षा के परिणामस्वरूप अधिक शिक्षात नारियाँ तेजी से भोगवाद की ओर अग्रसर हो रही है। वे फैशन और आडम्बर को ही जीवन का सार समझकर सादगी से विमुख होती जा रही हैं और पैसा कमाने की होड़ में अनैतिकता की ओर उन्मुख हो रही हैं। यही बहुत ही कुत्सित प्रवृत्ति है, जो उन्हें पुनः मध्यकालीन – हीनवस्था में धकेल देगी। इसी बात को लक्ष्य कर कवि पन्त नारी को चेतावनी देते हुए कहते है।
तुम सब कुछ हो फूल, लहर, विहगी, तितली, मार्जारी,
आधुनिके ! कुछ नहीं अगर हो, तो केवल तुम नारी।
प्रसिद्ध लेखिका श्रीमती प्रेमकुमारी, दिवाकर का कथन है, आधुनिक नारी ने निःसन्देह बहुत कुछ प्राप्त किया है, पर सब – कुछ पाकर भी उसके भीतर का परम्परा से चला आया हुआ कुसंस्कार नहीं बदल रहा है। वह चाहती है कि रंगीनियों से सज जाए और पुरूष उसे रंगीन खिलौना समझकर उससे खेले। वह अभी भी अपने – आपकों रंग – बिरंगी तितली बनाये रखना चाहती है। कहने की
आवश्यकता नहीं है कि जब तक उसकी यह आन्तरिक दुर्बलता दूर नही होगीं, तब तक उसके मानस का नव – संस्कार न होगा।
उपसंहार
भारतीय नारी पाश्चात्य शिक्षा के माध्यम से आने वाली यूरोपीय संस्कृति के व्यामोह में न फँसकर यदि अपनी भारतीयता बनाये रखे तो इससे उसका और समाज दोनों का हितसाधन होगा और वह उत्तरोत्र प्रगति करती जाएगी।
वर्तमान में कुरूप सामाजिक समस्याओं जैसे – दहेज प्रथा, शारीरिक व मानसिक हिंसा की शिकार स्त्री को अत्यन्त सजग होने की आवश्यकता है। उसे भरपूर आत्मविश्वास एवं योग्यता अ
नारी के इसी कल्याणमय रूप को रूप लक्ष्य कर कविवर प्रसाद ने उसके प्रति इन शब्दों में श्रद्धा – सुमन अर्पित किये
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत – नभ – पग – तल में,
पीयूष – स्त्रोत – सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।