Free 480+ Ri Ki Matra Wale Shabd || ऋ की मात्रा वाले शब्द

दोस्तों अगर आप इन्टरनेट पर Ri Ki Matra Wale Shabd की तलाश कर रहें है तो आप एकदम सही साइट पर आये हैं। आने वाले समय में दुनिया इन्टरनेट पर ही निर्भर रहेगी। आज के पोस्ट में ये ऋ की मात्रा वाली जानकारी दी जायेगी। आप इस पोस्ट को आखिरी लाइन तक जरुर पढ़ें।

हिन्दी हमारे भारत का राष्ट्रभाषा हैं जो भारत के हर एक राज्य में बोला जाता हैं। इसलिए आइए हम अपने छोटे बच्चों को हिन्दी कि बेसीक जानकरी मात्रा सें सीखये, ताकि आज मैं ऋ की मात्रा वाले शब्द का पोस्ट लिखूँगी जो 300 से अधिक शब्द होगें ।

Ri Ki Matra Wale Shabd

ऋ की मात्रा स्वर में हैं। इसका व्यंजन वाले वर्ण में ( कृषि) नीचे र् लगता हैं जो स्कूल के छोटे विद्यार्थी को सीखाते समय ऋ की मात्रा वाले शब्द लिखाते हैं  यह शब्द रिपीट कराते हैं। बच्चे असानी से समझ सके। ऋ की मात्रा स्वर का सातवा वर्ण हैं, इ, ई, ऊ की तरह ऋ की मात्रा के ज्ञान का होना अवश्यक हैं।

जो बच्चे ऋ की मात्रा नही पहचान पाते हैं वो हिन्दी पढ़ते समय परेशान रहते हैं ये व्यंजन के वर्ण के नीचे कौन सा मात्रा हैं। तो बच्चों अब आप लोगों को इसमें परशान नहीं होना हैं, मैं इस पोस्ट  में आप लोगों ऋ की  मात्रा वाले शब्द टेबल के माध्यम से बहुत सारा शब्दों का आर्टिकल लिखूँगी। जो समझने में पढंने -लिखने में ज्यादा असान लगेगा। दो अक्षर वाले ऋ की मात्रा, तीन अक्षर वाले ऋ की मात्रा और ऋ मात्रा का वाक्य भी रहेगा।

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आज के इस पोस्ट में निम्न टापिक कवर किया गया है।

  • ऋ की मात्रा वाले दो शब्द
  • ऋ की मात्रा वाले तीन शब्द
  • ऋ की मात्रा वाले चार शब्द
  • ऋ की मात्रा वाले 20 वाक्य

तो दोस्तो चलिए

दो अक्षर वाले ऋ की मात्रा का शब्द Ri Ki Matra Wale Shabd

ऋषि कृषि मृग
कृत घृणा कृणा
कृष्णा कृपा घृत
वृक्ष ऋण वृक
गृह वृथा वृग
वृष मृद कृति
तृण बृता ऋचा
तृप्त तृशा तृप्त
नृपा पितृ मृदु
वृध्द ऋतु तृण
वृत ऋणी ऋजु

 

तीन अक्षर वाले ऋ की मात्रा वाला शब्द

कृपालु तृतीय कृत्रिम
भृकुटि गृहणी मृगेंद्र
वृषभ श्रृंखला मृदुल
कृतज्ञ ऋषभ कृषक
कृपाल आकृति अपृय
जागृति वृजेश गृजेश
पृथक पृथ्वी मृणाल
शुकृति मृगेश तृफला
प्रवृत नृतंग सृजन
वृतांत कृतघ्न सदृश
पैतृक दृढंता मृदंग
अमृत प्रवृत्ति आवृति
समृध्दि वृतांत नृंशस
नेतृत्व नृसिंह उत्कृष्ट

 

Ri Ki Matra Wale Shabd चार अक्षर वाले ऋ मात्रा का शब्द

 

पृथकता गृहस्थ गृहपति
कृपणता तृतीयक भृगुरेखा
गृहवास घृतधार भृगराज
दृश्यम गृहदाह मृगराज
पृथ्वीगंज वृंदावन कृपालुता
वृताकार गृहनगर हृदयाघात
कृतधारा मृताधार मृगनयन
अमृतरस प्रकृतिक पृथकरण
तृणमय मातृभूमि दृष्टिकोण
गृहत्याग सांस्कृत कृतज्ञता
कृषिमंत्री वृक्षारोपण वृध्दाश्रम
ऋत्रपति ऋजुकोण ऋणभार
ऋणमुक्ति ऋणमोचन ऋणशेष
ऋणशोधन ऋणाधार ऋतुराज
ऋतुचर्या ऋतुवती ऋतुस्नान
ऋतुविज्ञान ऋत्विज अमृतसर 

 

ऋ कि मात्रा वाले वाक्य Ri Ki Matra Wale

  • ऋषि तपस्या में लीन हैं।
  • कृति खेल रही है।
  • घृणा मत करो।
  • वृक्ष हमें छाया देते हैं।
  • कृष्ण बंशी बजाते हैं ।
  • तृशा किताब पढ़ रही है।
  • ऋषभ स्कूल जाता है।
  • शुकृति बाजार से आती है।
  • पृथ्वी गोल है।
  • प्रकृति कितनी सुन्दर है।
  • जागृति तृतीय कक्षा में पढ़ती है।
  • गृहणी भोजन पकाती है।
  • अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर है।
  • वृक्षरोपण करना चाहिए ।
  • कृषक खेत में काम कर रहे है।
  • वृंदावन कृष्ण रास नचाते थे।
  • वृषभान की बेटी राधा रानी थी।
  • वृज कि गलियो में ग्वाला माखन चुराये।
  • कृप्या आप सावधान रहिए।
  • आकृति मेरी सहेली है।
  •  पृथ्वीराज चौहान रचयिता थे।
  • अमृता अमृतसर में रहती है।

ऋ की मात्रा वाली बच्चों की कहानी

बहुत समय पहले चीन में ऋषभ नामक एक राजा राज करता था। वह बहुत बुद्धिमान और न्यायप्रिय था। उसकी एक बेटी थी, जिसका नाम ऋतु था। वह बहुत सुन्दर थी। कई राजकुमार उनसे विवाह करना चाहते थे, लेकिन राजकुमारी अभी विवाह करने की इच्छुक नहीं थी।

एक राज ऋषभ ने अपनी बेटी ऋतु  को बुलाकर समझाया कि उसे विवाह कर लेना चाहिए। सब काम समय पर ही कर लेने चाहिएँ अन्यथा परेशानियों का सामना करना पड़ता है। राजा ने ऋतु के लिए एक अच्छा वर खोजने का प्रण किया। मातृहीना ऋतु पिता के आग्रह के आगे झुक गई। राजा ने पहले सेही अपने मन में तीन सुंदर, स्वस्थ तथा गुणी राजकुमार ऋतु के लिए सोच रखे थे।

उनमें से किसी एक का चुनाल करना था।राजा ने तीनों राजकुमारों को महल में बुलाया और राजकुमारी ऋतु की शादी की इच्छा प्रकट की। उन तीनों में से कौन श्रेष्ठ और राजकुमारी के लिए उपयुक्त वर है, यह जानने के लिए उसने एक उपाय सोचा। उसने उनसे कहा, तुम तीनों जाओ और एक महीने बाद राजकुमारी के लिए उपहार लेकर आओ। जिसका उपहार सबसे मूल्यवान होगा, उसी के साथ राजकुमारी का विवाह होगा।

तीनों राजकुमार महल से चल दिए। एक महीने बाद तीनों अपने- अपने उपहारों के साथ राजमहल में प्रविष्ट हुए। राजा ने प्रसन्न मन से उन तीनों का स्वागत किया। स्नान – भोजन आदि के पश्चात उसने तीनों से अपने – अपने उपहार दिखाने को कहा।

पहला राजकुमार एक बड़ा -सा थैला हाथ में लिए था। उसने उस थैले का मुँह खोलकर राजा के पैरों के पास उलट दिया। अत्यंत सुंदर चमकते हीरे, जवाहरात और मोती जमीन पर फैल गए। राजकुमार ने कहा, महाराज मेरी तरफ से ये मूल्यवान रत्न राजकुमारी को अर्पित हैं। मैंने इन्हें दूर – दूर के देशों से खोजा हैं।

रत्न देख राजा मुस्कुराने लगा किंतु उसने कहा कुछ नहीं। अब राजा ने दूसरे राजकुमार से पूछा, राजकुमार तुम क्या लाए हो, ऋतु के लिए ?

राजकुमार ने एक बदूंक निकाल कर राजा के सामने रख दी और कहा, ‘‘महाराज  यह अपने सब शत्रुओंं को हरा सकती है। यह बंदूक राजकुमारी को संसार की सबसे शक्तिशाली रानी बना सकता हैे।’’ अब राजा ने तीसरे राजकुमार की ओर देखा। वह खाली हाथ महल में आया था और उदास था। राजा ने पूछा, ‘‘राजकुमार तुम्हारा उपहार कहाँ है?

राजकुमार हाथ जोड़कर बोला, ‘‘मैं क्षमा चाहता हूँ महाराज। मैं राजकुमारी के लिए कुछ भी न ला सका।’’ राजा क्रोधित होकर बोला, तुम ऋतु का अपमान करना चाहते हो?

राज क्रोधित होकर बोला, ‘‘ तुम ऋतु का अपमान करना चाहते हो ?

राजकुमार  नतमस्तक हो गया, – ‘‘महाराज इतनी धृष्टता मैं कैसे कर सकता हूँ? आप कृपा कर मेरी बात सुनिए।’’

राजा बोला, ‘ठीक है, बोलो।’ राजकुमार कहने लगा- महल से निकलकर मैं आगे बढ़ा तो एक आदमी सड़क पर पड़ा कराह रहा था। वह बहुत बीमार था। मैंने उसे अपनी पीठ पर लादा और एक वैद्य के पास ले गया। वैद्य जी ने उसका उपचार किया। कई दिन बाद उसे होश आया। उसने अपने घर का पता बताया और मैं उसे वहाँ ले गया।

भूख से बिलखते उसके तीन छोटे – छोटे बच्चे और रोती – तड़पती उसकी पत्नी मुझसे यह सब सहन नही हुआ। मुझे उन पर बहुत तरस आया । मेरे पास पैसे नहीं थे। मेहनत – मजदूरी करके कुछ पैसे मिले, उसी से मैंने उस परिवार का पेट भरा। उस बीमार आदमी के इलाज का खर्च मुझे भी देना पड़ा। मैंने कई दिन तक कड़ी मेहनत कर उसकी देखभाल की। भगवान की कृपा से वह आदमी अब पूरा ठीक हो गया है और काम पर जाने लगा है।

मैं बहुत संतुष्ट हूँ कि मैने एक दुखी और निर्धन परिवार की मदद की किंतु अफसोस मुझे यह है कि पूरा महीना मैं इसी में लगा रहा और राजकुमारी के लिए कोई उपहार न ला सका। अब जैसा उचित समझें करे। यह कहकर राजकुमार ने नजरें झुका ली।राजा की आँखों में खुशी के आँसू छलकने लगे। उसने राजकुमार के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए और कहा, इन हाथो मे पड़े छाले संसार का सबसे मूल्यवान उपहार हैं।

ये प्रमाण हैं। कि तुमने दुखी और निर्धन लोगो की सहायता की है। निस्वार्थ भाव से उनकी सेवा करना तुम्हारा एक असाधारण कार्य है। मेरी  बेटी के लिए तुम ही सबसे उपयुक्त वर हो। मैं अपने बेटी का हाथ तुम्हें सौपता हूँ।

यह कहकर राजा ने राजकुमारी ऋतु भी इस राजकुमार से प्रभावित हो गई। अतः राजा ने दोनों की शादी कर दी।

दोस्तों आज का यह पोस्ट कैसा लगा नीचे कमेन्ट करके जरुर बताइयेगा ।

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