Free 700+ A Ki Matra Wale Shabd [अ की मात्रा वाले शब्द ]

दोस्तो आज के पोस्ट में मैं A Ki Matra Wale Shabd स्वर वर्ण के अ का मात्रा लिखूँगी। तो आप ये जान लिजिए अ कोई मात्रा नहीं होता हैं। इसलिए अ को स्वर का उदासीन  वर्ण कहते हैं, स्वर का पहला अक्षर होता हैं। लेकिन स्कूल बच्चे इस वर्ण को सीखाते रहते हैं। टीचर अक्सर छोटे विद्यार्थी को सबसे पहले अ का मात्रा पर ध्यान देते हैं।

A Ki Matra Wale Shabd

उसको साधारण तौर पर बोलने – लिखने अ से ही शुरू करते हैं। छोटे बच्चों को टीचर सीखते समय होमवर्क को भी करने लिए देते है। जिस पर मात्रा न होता, वह सिम्पल रूप से केवल व्यंजन वर्ण का प्रयोग करते हैं। जैसे कल, जल, नल इस तरह के अक्षर से बच्चों को धीरे – धीरे शब्द लिखना सीखाते हैं। उसके बाद मात्रा का ज्ञान देने लगते हैं।

तो दोस्तों आइए हम अपने बच्चों को सधारण वर्ण से लिखना – पढ़ना सीखाये । मैं इस आर्टिकल में छोटे विद्यार्थी  नर्सरी,L.K.G, U.K.G के लिए बहुत जरूरी हैं। तो हम अब टेबल के माध्यम से बच्चों को दो अक्षर, तीन अक्षर, चार अक्षर, का शब्द लिखने और पढ़ने के लिए उपलब्ध कराऊँगी। जो आप लोगो को असानी से समझ में आजाये।

Free A Ki Matra Wale Shabd

अ का ध्वनि पहले से शब्दों साथ जुड़ी रहती हैं। जिनका कोई निशान और चिह्न नही होता है। जैसे – क् + अ = क,    प् + अ = प

 

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Topic Included in this Post {A Ki Matra Wale Shabd}

  • अ की मात्रा
  • दो अक्षर का शब्द
  • बिना मात्रा वाला दो अक्षर का शब्द
  • तीन अक्षर का शब्द
  • बिना मात्रा वाले शब्द
  • अ की मात्रा वाले शब्द
  • बिना मात्रा वाले चार अक्षर के शब्द
  • अ की मात्रा वाले बच्चों की कहानी
  • अ की मात्रा वाले वाक्य

दो अक्षर का शब्द A Ki Matra Wale Shabd

    कल थल पल
हल नल हट 
मत कर रह
हर जर सर
पर रथ रन
मल मठ सज
नस पक झट
पट कट नट
वट शक डक
बह वह धन
जग भर कर
खल चल जल
वन मग पग
खग रट सट
हट खत कम
दम हम अप
कप जप मथ
रख हस लग
सन तर भर
अब जब यह
यश दम अक्ष
कक्ष सच पक्ष
नक्ष नम नभ
जन छत जज
बस नर खप

 

A Ki Matra Wale तीन अक्षर वाला शब्द

तरस अक्षर अमर
अजर पवन कवन
करन खरच खबर
बरस हरष छतर
नक्षत्र बजट कमल 
महल  मसल दमक
दशक रतन रजन
नमक गलत मटर
अजय भरत भवन
सरक शहर जहर
कसक कलम सड़क
गरम शहद पकड़
गदर चहल  पहल
मचल बहल अभय
महक असम कसम
नहर अगर मगर
अटल अचल घटक
पटक मटक जकड़
गगन मगन सजन
भजन नजर लहर
पहर जगह सतत
समर सदन मदन
बदन अखर हनन
जतन पतन खनक

 

A Ki Matra Wale चार अक्षर वाला

अचरज अचकन अदरक
मलमल जलकल कटहल
अजगर पनघट अहमद
शरकस खटमल बलबल
करतब मतलब शरबत
सहजन बड़हड़ बरगद
दलदल हलचल सरकन
भड़कन मचमच समसम
हरदम टसमस करकच
कचमच सबनम अकबर
अनवर दमकल धमधम
धड़कन अड़कन अड़चन
बचपन दशरथ खटमल
हलधर बरतन चमचम
पटकन जलजल पलपल
कसरत धकधक नटखट 
सटपट झटपट खटपट
उबटन मलहम मनबड़
जबरन सरबस बरबस
उभचर टमटम टनटन
नभचर अफसर मरघट
अबतक कबतक सचतक
पकपक भगवन उलझन

 

Free A Ki Matra Wale Vakya

  • अमर बहुत अच्छा अदमी है।
  • पवन शहर में अपना दुकान खोला हैं।
  • अबतक दादा जी कहां थे।
  • अजगर बहुत बड़ा होता हैं।
  • सरकस कितना अचरज था।
  • कबतक तुम आपना काम करोंगे।
  • अहमद जी ऑफिस गये।
  • अजय एक क्रिकेटर हैं।
  • महल बहुत शानदार हैं।
  • सचतक एक चैनल हैं।
  • बचपन बहुत खुशहाल होता हैं।
  • दशरथ राम के पिता थे।
  • नहर में पानी कम हैं।
  • सड़क हाईवे बन गए।
  • शहद मिठा होता हैं।
  • कटहल कि सब्जी पसन्द आती है।
  • अदरक की चाय अच्छा लगा।
  • डगर बहुत कठिन हैं।
  • बकबक मत कर।
  • हलचल ज्यादा हो गया।
  • कसम मत खाओं।
  • गतल बोलना मना हैं।
  • मदन मिठाई का दुकान खोला
  • सजन गाड़ी बनता हैं।
  • उबटन लगा।
  • इधर -उधर मत भटक।
  • जगह बदल दो ।

 

बच्चों के लिए अच्छी कहानी
मदर टेरेसा की कहानी

1910 ई0 में अल्बेनिया में एक कृषक परिवार के घर एग्नेस का जन्म हुआ। माता – पिता धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वे प्रायः एगनेस को अपने साथ गिरिजाघर ले जाते। छोटी – सी एग्नेस को लगता कि कोई अज्ञात शक्ति उसे किसी महान कार्य के लिए बुला रही है। क्रिश्चियन संस्थाओं से अनेक युवक- युवतियाँ विभिन्न देशों मेंं सेवा कार्य के लिए प्रायः जाते रहते थे।

एगनेस ने भी अपने माता – पिता से आज्ञा लेकर आयरलैंड के लोरेटो संघ में एक वर्ष तक शिक्षा ग्रहण की। तत्पश्चात उन्हें सेवा कार्य के लिए कोलकाता लोरेटा संघ में चुन लिया गया।लोरेटो संघ में कार्य करते हुए उन्हें दो वर्ष हो चुके थे और अब उनका नाम एग्नेस के स्थान पर टेरेसा पड़ चुका था।

संघ में रहकर वे अपने मन के अनुसार कष्टों व बीमारीयों से घिरे दीन – दुखियों की सेवा नहीं कर सकती थीं। उन्हें संघ के नियमों के अनुसार चलना पड़ता था। अतः उन्होने अपनी इच्छानुसार कार्य करने की अनुमति संघ से ली और संघ के वस्त्र का परित्याग कर दिाय वह नीली किनारी वाली सफेद धोती पहनने लगीं और दुखियों और दरिद्रों के बीच रहकर उनकी सेवा करने लगी।

उनके आग्रह पर फादर ने उन्हें अमेरिकन मेडिकल मिशनरी सिस्टर्स नामक संस्था में नर्सिंग के प्रशिक्षण के लिए भेज दिया। तीन महीने में ही उन्होने सभी प्रकार के रोगों के उपचार का प्रशिक्षण ले लिया और फिर कोलकाता वापस लौट आईं।

कोलकाता में एक झोपड़ी में उन्होंने कार्य आंरभ कर दिया।  वे निर्धन बच्चों को शिक्षा देने लगीं। धीरे – धीरे उनकी सेवा का क्षेत्र व्यापक हो गया। काली मंदिर के पास एक मकान मिला जिसमें वे रोगियों की उपचार करने लगीं।

लोगो ने विरोध किया क्योंकि ईसाई महिला के संपर्क से धर्म भ्रष्ट होने की आशंका थी। किंतु उन्हे निस्वार्थ भाव से बीमार व गरीबों की सेवा करते देख निगम अधिकारी भी वहाँ से उन्हें हटा नही पाए। खुद काली मंदिर का पुजारी जब बीमार हुआ तो मदर टेरेसा स्वयं उसकी सेवा करने उसके घर पहुँच गई और उसे स्वस्थ कर दिया। धर्मशाला के कमरे से उन्हें निकालने की जिद करने वाला वह पुजारी भी उनकी सेवाओं के सम्मुख नतमस्तक हो गया।

उनका नाम अब मदर टरेसा पड़ चुका था।  निर्धनो की माँ,  दुख बीमारी की माँ, असहाय और रोगियों की देखभाल करने वाली माँ।

दिनोें – दिन उनकी सेवा के कार्य का विस्तार हो रहा था। संसार के बड़े – बड़े राष्ट्रध्यक्ष, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति उनकी सहायता करने में अपने आपने गर्वित अनुभव करने लगे। उनके साथ काम करने वाली बहुत – सी स्वयं सेविकाएँ आ जुटीं।

धीरे – धीरे उनकी समस्य़ाएँ स्वतः दूर होने लगी।

मदर टरेसा ने अपनी संस्था का नाम ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ रखा। वे जीवन- पर्यत अविवाहित रही तथा उनके साथ काम करने वाली युवतीयों के लिए भी अविवाहित रहना आवश्यक माना गया। आज कोलकाता के ‘निर्मल हृदय’ तथा अनेक आश्रम और सेवा – संस्थाओं का जाल भारत में ही नहीं संसार के अनेक नगरों में भी फैला हुआ है।

मदर टेरेसा ने कुष्ठ रोगियों के कष्ट दूर करने का प्रयत्न किया जिनके अंग गलकर धीरे – धीरे उनके जीवन को ही लील लेना चाहते थे। ऐसे लोगों की सेवा की जिनकी सब आशाएँ समाप्त हो चुकी थीं। उन्होंनें मानवता को ही आधार बनाकर सेवा का कार्य किया। नेपाल, पाकिस्तान, मलाया, युगोस्लाविया, मालटा, इंग्लैंड अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका आदि के देश भी मदर टेरेसा की सेवाओं से वंचित नही रहे।

अनेक सेवा केन्द्रआज भी वहाँ कार्य कर रहे हैं। इस प्रकार मदर टेरेसा एक सार्वभौम व्यक्तित्व बन गई।

मदर टेरेसा का आँचल सरकारों से प्राप्त सम्मान तथा धनराशि से भर गया। सर्वप्रथम 1962 में उन्हे ‘पदम श्री’ से विभूषित किया गया। 1980 में उन्हें ‘भारत रत्न’ का सर्वोच्च दिया गया। 1979 में उन्हें संसार का सर्वोच्च ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ प्रदान किया गया जिसके अंतर्गत दस करोड़ रूपये के लगभग की राशि उन्हें भेंट की गई।

1962 में ‘मेग्सेसे पुरस्कार’, 1971 में ‘पोनजान शांति पुरस्कार’ 1971 में ही कैनेडियन ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ तथा इसी प्रकार के अन्य अनेक पुरस्कारों  से विभिन्न सरकारो, शिक्षा संस्थानों आदि ने मदर टेरेसा को सम्मानित किया। कार्य में सुविधा देने के लिए भारत सरकार ने रेल और वायु सेवा से निशुल्क यात्रा करने का भी प्रबंध उनके लिए किया।

मदर टेरेसा की आयु बढ़ती जा रही थी और उसी के साथ बढ़ रही थी उनके मन की दृढ़ता। किंतु विधि के के विभिन्न को कौन टाल सकता है। वे अस्वस्थ रहने लगीं और 1997 में उनका निधन हो गया। जब उनके निधन का समाचार देश – विदेश में पहुँचा तो सरकारों ने उनके सम्मान में राष्ट्रीयों शोक मनाने के साथ-साथ अपने राष्ट्रीय ध्वजों  को भी झुका दिया था। उनकी विदाई पर समूचा विश्व रो उठा था।

मदर टेरेसा का संपूर्ण जीवन महान साध्वी के समान नीली किनारे की दो सादी धोतियों में बीता। उस ‘माँ ’ का वह उज्ज्वल रूप आँखों से कभी ओझल नहीं होता। वह मरकर भी अमर हैं।

मदर टेरेसा का संदेश- 

मदर हाउस में भित्ति – पट्टिका पर एक प्रार्थना लिखी हुई है-
मौन का फल है, प्रार्थना,
प्रार्थना का फल है आस्था।
आस्था का फल है प्रेम,
प्रेम का फल है सेवा।

आज का पोस्ट कैसा लगा कमेन्ट में जरुर बताइयेगा।

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