Paryavrn Pradushan ka Samsya ( पर्यावरण प्रदूषण का समस्या )

हेलो! दोस्तों आज का मेरा पोस्ट हैं, पर्यावरण प्रदूषण का समस्या ( Paryavrn Pradushan ka Samsya ) है। जो हमें चारों से परिवृत किये हुए है, वही हमारा पर्यावरण है। इस पर्यावरण के प्रति जागरूकता  आज की प्रमुख आवश्यकता है, क्योकि यह प्रदूषित हो रहा है। प्रदूषण की समस्या प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत के लिए अज्ञात थी।

इतना भयानक बीमारी के कारण बनता चला जा रहा है। इसका कोई निवारण नही हो पारहा है। अब यह विचार केवल मानव के हित की बात है। ध्वनि प्रदूषण पर रॉबर्ट कोच के अपनी सोच को कहते हुए जो  नोबल पुरस्कार  के विजेता है।

environmental pollution
environmental pollution

यह वर्तमान युग में हुई औद्योगिक प्रगति एवं शस्त्रास्त्रों के निर्माण के फलस्वरूप उत्पन्न हुई है। आज इसने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि इससे मानवता के विनाश का संकट उत्पन्न हो गया है। मानव – जीवन मुख्यतः स्वच्छ वायु और जल पर निर्भर है, किन्तु यदि ये दोनों ही चीजे दूषित हो जाएँ तो मानव के अस्तित्व को ही भय पैदा होना स्वाभाविक है। लगता है कि वह दुःखद दिन अब आ गया है।

प्रदूषण का अर्थ 

स्वच्छ वातावरण में ही जीवन का विकास सम्भव है। पर्यावरण का निर्माण प्रकृति के द्वारा किया गया है। प्रकृति द्वारा प्रदन्त पर्यावरण जीवधारियों के अनुकूल होता है। जब इस पर्यावरण में किन्हीं तत्वों का अनुपात इस रूप में बदलने लगता है, जिसका जीवधारियों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना होती है तब कहा जाता है कि पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है।

यह प्रर्यावरण प्रदूषण सभी जीव – जन्तुओं के विभिन्न तरह का घातक होता है। लोगों के वृद्धि में सावधानी न होने के कारण और औद्योगिक वृद्धि ने प्रदूषण का दिक्कते को पैदा कर देरहा है।  इसने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि इससे कूड़े – कचरे के ढेर से पृथ्वी, हवा तथा पानी प्रदूषित हो रहे हैं.

प्रदूषण के कितने प्रकार होते है.

आज के वातावरण में प्रदूषण निम्नलिखित रूपों में दिखाई पड़ता है

1. वायु प्रदूषण

वायु जीवन का अनिवार्य स्त्रोत है। प्रत्येक प्राणी को स्वस्थ रूप से जीने के लिए शुद्ध वायु की आवश्यकता होती है, जिस कारण वायुमण्डल में इसका विशेष अनुपात होना आवश्यकता है। जीवधारी साँस द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करता है और कार्बन डाइ – ऑक्साइड छोड़ता है।

पेड़ – पौधे कार्बन डाई-ऑक्साइड लेते हैं और हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। घने जंगलों से ढके पहाड़ आज नंगे दीख पड़ते है। इससे ऑक्सीजन का सन्तुलन बिगड़ गया है और वायु अनेक हानिकारक गैसें भर गयी है, जो प्राचीन इमारतो, वस्त्रों , धातुओं तथा मनुष्यों के फेफड़ों के लिए संयन्त्रों से निकलने वाले धुएँ से आँखे ही जलने लगती हैं, साथ ही फेफड़े में भी  खतरनाक महीन परत से ढक जाते हैं।

2. जल प्रदूषण 

जीवन के अनिवार्य स्त्रोत के रूप में वायु के बाद प्रथम आवश्यकता जल की ही होती है। जल को जीवन कहा जाता है। जल का शुद्ध होना स्वस्थ जीवन के लिए बहुत आवश्यक है। देश के प्रमुख नगरों के जल का स्त्रोत हमारी सदानीरा नदियाँ है, फिर भी हम देखते हैं कि बड़े – बड़े नगरों के गन्दें नाले तथा सीवरों को नदियों से जोड़ा जाता है।

विभिन्न औद्योगिक व घरेलू स्त्रोतों से नदियों व अन्य जल – स्त्रोतों में दिनों – दिन प्रदूषण पनपता जा रहा है। तालाबों पोखरों व नदियों में जानवरों को नहलाना, मनुष्यों एवं जानवरों के मृत शरीर को जल में  प्रवाहित करना आदि ने जल – प्रदूषण में बेतहाशा वृद्धि की है। कारखानों का का कचरा गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों को प्रदूषित करता हुआ सागर तक पहुँच रहा है।

औद्योगिक नगरों के निकट के जल – स्त्रोतों को दूषित करने में रेडियोऐक्टिव व्यर्थ पदार्थ तथा धात्विक पदार्थ भी विशेष योगदान देते हैं। प्लास्टिक की थैलियाँ, तैलीय पदार्थ तथा कृषि कार्य में प्रयुक्त होने वाले कीटनाशक तथा रासायनिक उर्वरकों के जल में मिलने से भी जल में मिलने से भी जल – प्रदूषण बढ़ता है।

3.ध्वनि प्रदूषण 

ध्वनि प्रदूषण आज की एक नयी समस्या है। इसे वैज्ञानिक प्रगति ने पैदा किया है। मोटरकार, टैक्टर, जेट विमान, कारखानों के सायरन, मशीनें, लाउडस्पीकर आदि ध्वनि के सन्तुलन को बिगाड़कर ध्वनि- प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। तेज ध्वनि से श्रवण – शक्ति का हास तो होता ही है साथ ही कार्य करने की क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ पैदा हो जाती है। अत्यधिक ध्वनि – प्रदूषण से मानसिक विकृति तक हो सकती है।

4. रेडियोंधर्मी प्रदूषण 

आज के युग में वैज्ञानिक परीक्षणों का जोर है। परमाणु परीक्षण निरन्तर होते ही रहते हैं। इनके विस्फोट से रेडियोधर्मी पदार्थ वायुमण्डल में फैल जाते हैं और अनेक प्रकार से जीवन को क्षति पहुँचाते हैं। दूसरे विश्व – युद्ध के समय हिरोशिमा और नागासाकी में जो परमाणु बम गिराये गये थे, उनसे लाखों लोग अपंग हो गये थे और आने वाली पीढी भी इसके हानिकारक प्रभाव से अभी भी अपने को बचा नहीं पायी हैं।

5. रासायनिक प्रदूषण 

कारखानों से बहते हुए अवशिष्ट द्रव्यों के अतिरिक्त उपज में वृद्धि की दृष्टि से प्रयुक्त कीटनाशक दवाइयों और रासायनिक खादों से भी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये पदार्थ पानी के साथ बहकर नदियों, तालाबों और अन्ततः समुद्र में पहुँच जाते हैं और जीवन को अनेक प्रकार से हानि पहुँचाते हैं।

प्रदूषण की समस्या और उससे हानियाँ 

कारखानों के धुएँ से, विषैले कचरे के बहाव से तथा जहरीली गैसों के रिसाव से आज मानव – जीवन समस्याग्रस्त हो गया है।आज तकनीकी ज्ञान के बल पर मानव विकास की दौड़ में एक – दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ में लगा है।

युद्ध में आधुनिक तकनीकों पर आधारित मिसाइलों और प्रक्षेपास्त्रों ने जन – धन की अपार क्षति तो की ही है साथही पर्यावरण पर भी घातक प्रभाव डाला है, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य में गिरावट, उत्पादन में कमी और विकास प्रक्रिया में बाधा आयी है।

वायु – प्रदूषण का गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव मनुष्यों एवं अन्य प्राणियों के स्वास्थ्य पर पड़ता हैं। सिरदर्द, आँखे दुखना, खाँसी, दमा, हदय रोग आदि किसी – न – किसी रूप में वायु – प्रदूषण से जुड़े हुए है। प्रदूषित जल के सेवन से मुख्य रूप से पाचन – तन्त्र सम्बन्धी रोग उत्पन्न होते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रति वर्ष लाखों बच्चों दूषित जल पीने के परिणामस्वरूप उत्पन्न रोगों से मर जाते हैं। ध्वनि- प्रदूषण के भी गम्भीर और घातक प्रभाव पड़ते है। ध्वनि – प्रदूषण ( शोर ) के कारण शारीरिक और मानसिक तनाव तो बढ़ता ही है, साथ ही श्वसन – गति और नाड़ी – गति में उतार – चढ़ाव जठरान्त्र की गतिशीलता में कमी तथा रूधिर परिसंचरण एवं ह्दय पेशी के गुणों में भी परिवर्तन हो जाता है तथा प्रदूषण जन्य अनेकानेक बीमारियों से पीड़ित मनुष्य समय से पूर्व ही मृत्यु का ग्रास बन जाता है।

समस्या का समाधान 

महान शिक्षाविदों और नीति – निर्माताओं ने इस समस्या की ओर गम्भीरता से ध्यान दिया है। आज विश्व का प्रत्येक देश इस ओर सजग है। वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए वृक्षारोपण सर्वश्रेष्ठ साधन है।

साथ ही भविष्य के प्रति आशंकित, आतंकित होने से बचने के लिए सबकों देश की असीमित बढ़ती जनसंख्या को सीमित करना होगा, जिससे उनके आवास के लिए खेतों और वनों को कम न करना पड़े ।

कारखाने और मशीने लगाने की अनुमति उन्ही व्यक्तियों को दी जानी चाहिए, जो कर सक। जो औद्योगिक कचरे और मशीनों के धुएँ को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था कर सके। संयुक्त राष्ट्र संघ को चाहिए कि वह परमाणु – परीक्षणों को नियन्त्रित को फिर से प्राप्त करने पर बल देने के लिए किया जाना चाहिए।

वायु – प्रदूषण से बचने के लिए हर प्रकार की गन्दगी एवं कचरे को विधिवत् समाप्त करने के लिए औद्योगिक संस्थानों में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि व्यर्थ पदार्थों एवं जल को उपचारित करके ही बाहर निकाला जाए तथा इनकों जल – स्त्रोतों से मिलने से रोका जाना चाहिए।

इंग्लैण्ड में लन्दन का मैला पहले टेम्स नदी में गिरकर जल को दूषित करता था। अब वहाँ की सरकार ने टेम्स नदी के पास एक विशाल कारखाना बनाया है, जिसमें लन्दन की सारी गन्दगी और मैला मशीनों से साफ होकर उत्तम खाद बन जाता है और साफ पानी टेम्स नदी में छो़ड दिया जाता हैं। अब इस पानी में मछलियाँ पहले से कहीं अधिक संख्या में पैदा हो रही है। ध्वनि – प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए भी प्रभावी उपाय किये जाने चाहिए। सार्वजनिक रूप से लाउडस्पीकरों आदि के प्रयोग को नियन्त्रित किया जाना चाहिए।

उपसंहार 

पर्यावरण में होने वाले प्रदूषण को रोकने व उसके समुचित संरक्षण के लिए समस्त विश्व में एक नयी चेतना उत्पन्न हुई है। हम सभी का उत्तरदायित्व है कि चारों ओर बढ़ते इस प्रदूषित वातावरण के खतरों के प्रति सचेत हो तथा पूर्ण मनोयोग से सम्पूर्ण परिवेश को स्वच्छ व सुन्दर बनाने का यत्न करें।

वृक्षारोपण का कार्यक्रम सरकारी स्तर पर जोर – शोर से चलाया जा रहा है तथा वनों की अनियत्रित कटाई को रोकने के लिए भी कठोर नियम बनाये गये हैं। तथा वनों की अनियन्त्रित कटाई को रोकने के लिए भी कठोर नियम बनाये गये है। इस बात के भी प्रयास किये जा रहे हैं कि नये वन – क्षेत्र बनाये जाएँ और जनसामान्य को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इधर न्यायालय द्वारा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को महानगरों से बाहर ले जाने के आदेश दिये गये हैं तथा नयें उद्योगों को लाइसेन्स दिये जाने से पूर्व उन्हें औद्योगिक कचरे के निस्तारण की समुचित व्यवस्था कर पर्यावरण विशेषज्ञों से स्वीकृति प्राप्त करने को अनिवार्य कर दिया गया है। यदि जनता भी अपने ढंग से इन कार्यक्रमों में अवसर पर कम – से – कम एक वृक्ष अवश्य लगाएगी तो निश्चित ही हम प्रदूषण के दुष्परिणामों से बच सकेंगे और आने वाली पीढ़ी को भी इसकी काली छाया से बचाने में समर्थ हो सकेंगे।

 

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