हिन्दी मात्रा ज्ञान

भूमिका

हिंदी हमारी संपर्क भाषा है। यह वह सूत्र है जो अलग – अलग भाषा बोलने वाले एवं अलग – अलग प्रांतों के लोगों को आपस में जोड़कर रखती है। इसीलिए, इसे जन-जन की भाषा कही जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ।

बच्चों के लिए इस भाषा को सीखने- समझने और इस भाषा में ज्ञानवर्धन करने के लिए एक सशक्त माध्यम की आवश्यकता होती है। वह माध्यम है – हिंदी की  हमारी पाठ्यपुस्तकें। उन्हें भाषा के स्तर पर हिंदी के मानक स्वरूप व उसकी विस्तृत शब्द – संपदा के लोक में विचारण कराती हैं।
पाठ्यपुस्तकें भाषा के चार स्तंभों –    1. वाचन कला     2. श्रवण कला    3. पठन कला   4. लेखन कला
को कितनी मजबूती प्रदान करती हैं। ये स्तंभ हमें भाषा की अभिव्यक्ति रचनात्मकता  की आजादी प्रदान करते हैं ।

मात्रा वाले ज्ञान
हिन्दी मात्रा वाले ज्ञान

भाषा के इन्हीं स्तभों को ध्यान में रखते हुए हिन्दी मात्रा ज्ञान – हिंदी की पाठ्यपुस्तक रची- बुनी गई है। इस पुस्तक की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
1. पाठों का चयन /संकलन/लेखन / संपादन करते समय विविध विधाओ को ध्यान में रखा गया हैं। इनमें कहानी, कविता, एकांकी/ नाटक, संस्मरण, पत्र, व्यक्तित्व परिचय, यात्रा वृत्तांत, निबंध आदि शामिल हैं।

2. पाठों की विषय –वस्तु भी विविधता लिए है। इनमें नीति, विज्ञान, पर्यावरण, हास्य-व्यग्य, उपदेश विवरणात्मक सोच आदि शामिल हैं।
3. पुस्तक चार खंडों में विभाजित है। प्रत्येक खंड में एक मौखिक पाठ शामिल है। इस पाठ का उद्देश्य बच्चों में वाचन कौशल , श्रवण कौशल और अवलोकन कौशल का विकास करना है। अन्य पाठों का संबंध पठन कौशल, लेखन कौशल और रचनात्मक कौशल से है।

4. पाठों के साथ कुछ कठिन/अपरिचित शब्दों के अर्थ भी दिए गए हैं। ये अर्थ संबंधित पृष्ठों पर ही दिए गए हैं।
5. पाठ के आरंभ में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुझाए गए उन मौलिक जीवन कौशलों का उल्लेख किया गया है जिनका संबंध उस पाठ से है। साथ ही,उस पाठ में निहित नैतिक मूल्यों का उल्लेख भी प्रारंभ में ही कर दिया गया है।

6. प्रत्येक पाठ के साथ अभ्यास हेतु भरपूर प्रश्न दिए गए हैं। ये प्रश्न विविध – उद्देश्यीय हैं,   जैसे –
( a) विषय  संबंधी  ग्राह्यता का मूल्यांकन करना व पुनरीक्षण करना
(b) व्याकरण संबंधी तत्वों से अवगत कराना व उनका मूल्यांकन करना
(c) रचनात्मक गतिविधियों में बच्चों की एकल व सामूहिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उन्हें प्रेरित करना ताकि संप्रेषणीयता
व अभिव्यक्ति की दृष्टि से उनके व्यक्तित्व का विकास विकसित हो सके ।

7. अभ्यास प्रश्न चार भागों में बटे हैं –
(a) वाचन कौशल –इस भाग में पाठ आधारित वस्तुनिष्ठ प्रश्न  और मौखिक प्रश्न दिए हैं ।
(b) लेखन कौशल – इस भाग में पाठ आधारित विविध लघु – उत्तरिय प्रश्न और लिखित प्रश्न दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त
मूल्यपरक प्रश्न अलग से पूछे गए हैं ।

(c) भाषा कौशल  – इस भाग में व्याकरण से संबंधित बहु – विकल्पीय प्रश्न और सामान्य प्रश्न पूछे गए हैं। जहाँ तक संभव हो
सका है, व्याकरणिक तत्वों की परिभाषाएँ भी दी गई हैं ।
(d) रचनात्मक कौशल – इस भाषा में मौखिक और लिखित अभिव्यक्ति के लिए कुछ कार्य व क्रियाकलाप दिए गए हैं ताकि

बच्चो की तार्किक क्षमता का विकास हो सके ।
8. पाठों के अंत में रचनाकरों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है।
9. प्रत्येक खंड के अंत में पुनरीक्षण कार्य दिए गए हैं। इन्हें दो भागों में बाँटा गया है-

(a) पठित बोध – इस भाग में पाठों से चुने हुए कुछ अंश देकर उनपर आधारित प्रश्न पूछे गए है।
(b) बहु – वैकल्पिक प्रश्न – इस भाग में व्याकरण संबंधी बहु – वैकल्पिक प्रश्न पूछे गए हैं।
10. पुस्तक के अंत में परीक्षा पत्र –प्रत्येक सत्र के लिए एक परीक्षा पत्र अर्थारत् कुल दो परीक्षा पत्र (प्रथम सत्र व द्विवितीय सत्र के लए अलग – अलग ) – दिए गए है।

इन विशेषताओं के अतिरिक्त प्रत्येक पुस्तक में, पाठ तालिका से ठीक पहले, दो बातों का उल्लेख प्रमुखता से किया गया है-
11. हिंदी का मानकीकरण – हिंदी भाषा में लेखन की दृष्टि से एकरूपता लाने के उद्देश्य से केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार ने कुछ वर्णो, वर्तनियों एवं शब्दों का मानकीकरण किया है। इस मानकीकरण के प्रमुख बिंदुओं का उल्लेख किया गया है।

12. मौलिक जीवन कौशल –  बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कुछ मौलिक जीवन कौशलों पर बल देने की बात कही है। इन मौलिक कौशलों की सूची दी गई है।
अतः में , यह अपेक्षा की जाती है कि पठन-पाठन की दृष्टि से पुस्तक सर्वग्राह्य व सर्व – उपयोगी होगी और इसे पढंने/ पढ़ाने में हिंदी भाषा की रसलता व सरसता का आनंद लिया जा सकेगा।

हिंदी का मानकीकरण

हिन्दी भाषा में वर्णों, वर्तनियों एवं शब्दों के प्रयोग में एकरुपता लाने के लिए केंद्रीय हिन्दी निदेशालय, भारत सरकार ने कुछ मापदंड बनाए हैं। इनके आधार पर कुछ वर्णों, वर्तनियों और शब्दों के मानक रूप निर्धारित किए गए हैं।

वर्णों एवं वर्तनियों के मानक रूप

संयुक्ताक्षरों के मानक रुप

1- खड़ी पाई वाले व्यंजन से बने संयुक्ताक्षर में पहले व्यंजन की खड़ी पाई हटा दी जाए। जैसे-
ग्  + घ = ग्घ – बग्घी                         च्  +  च =  च्च – बच्चा
न्  + म = न्म  – जन्म                         थ्  +  य   =  थ्य – तथ्य

2- घुंड़ी वाले व्यंजन से बने संयुक्ताक्षर में पहले व्यंजन की घुंडी आधी कर दी जाए । जैसे –
क् + क  =  क्क  – चक्का                    फ्  + त  =   फ्त  – मुफ्त

3- ‘र’ के संयुक्त रूप में यदि ‘र’ पहले आया हो तो यह रेफ ( ) के रूप में बाद वाले व्यंजन के साथ इस
प्रकार जोड़ा  जाए –
र्  + क  =  र्क – नर्क                    र्  + द  =   र्द  – दर्द            र्  +  प   =  र्प  – सर्प

4- ‘र’ के संयुक्त रुप में यदि ‘र’ बाद में आए तो यह पदेन ( या ) के रूप में पहले व्यंजन के साथ इस

प्रकार जोड़ा जाए –
ज्  + र  =   ज – वज्र                 प्  +  र  =    प्र  – प्रण
ट्  + र  =   ट्र  – ट्रक                  ड्  +  र  =   ड्र – ड्रेस

5- ‘श’ और ‘त्’ व्यंजन ‘र’ के साथ मिलकर संयुक्त व्यंजन ( क्रमशः ‘श्र’ और ‘त्र’) बन गए हैं। इन्हें
‘श्’ और ‘त्र’ के रूप में न लिखा जाए ।

6- ‘ड’, ‘छ’, ‘ट’, ‘ड’, ‘ढ’, ‘द’, या ‘ह’ से बने संयुक्ताक्षर में यदि यह वर्ण पहले आया हो तो इसमें
हल चिह्न लगा दिया जाए । जैसे –

ड़  +  ग   =  ड़्ग  – खड़्ग                     ट्  + ठ  =  ट्ठ  – गट्ठर

ड्  + ढ  =     ड्ढ  –  बुड्ढा                       द्  + य   =  द्य  -विद्या

ह्  + न   =    ह्न  –  चिन्ह                      ह्  +  म  =  ह्म  – ब्राह्मण

7- हल चिह्न वाले संयुक्ताक्षर में ‘इ’ की मात्रा (f) हल चिन्ह वाले वर्ण के ठीक बाद संबंधित व्यंजन के
साथ लगाया जाए। जैसे –
चिट्ठियाँ       बुद्धि      गड्डियाँ      पद्मिनी

8- तीन व्यंजनो से बने संयुक्ताक्षर में कुछ शब्द ऐसे हैं जिनमें एक व्यंजन का लोप हो गया है।ऐसे शब्द
दो व्यंजनों के संयुक्ताक्षर के रूप में ही लिखे जाएँ। जैसे –
महत्व        (‘महत्व’ या ‘महत्त्व’ नहीं)                   मूर्ति       (‘मूर्ति’ या ‘मूर्ति’ नहीं)
कर्तव्य        (‘कर्त्तव्य’ या ‘कर्त्त्तव्य’ नहीं)               अर्ध     (‘अर्द्ध’ या ‘अदर्ध’ नहीं)

अनुस्वार (अं) एवं चंद्र  बिंदु  ( अँ) के मानक रूप

1- पंचम वर्ण (‘ड’ , ‘ञ’, ‘न’ या ‘म’ ‘ण’ ) के बाद समान वर्ग के शेष चार वर्णो (‘क’, से ‘घ’, ‘च’,से
‘झ’, ‘ट’, से ‘ढ’, ‘त’, ‘ध’, ‘प’ से ‘भ’) में से कोई वर्ण आया हो तो पंचम वर्ण अनुस्वार के
रुप में ही लिखा जाए । जैसे –

गंगा         (‘गड्गा’ नहीं)

चंचल        (‘चञ्चल’ नही)

ठंड           (‘ठण्ड ’ नही)

संत           (‘सन्त’ नही)

पंप       (‘पम्प’ नही)

 

2- पंचम वर्ण के बाद किसी अन्य वर्ग का व्यंजन आए चो पंचम वर्ण आधे वर्ण के रूप में लिखा जाए, न
कि अनुस्वार के रूप में। इस प्रकार, ‘अन्य’ को ‘अंय’ या ‘चिन्मय’ को ‘चिमंय’ या ‘सम्यक्’ को
‘संयक्’ लिखना गलत होगा ।

3- संस्कृत के शब्दों में पंचम वर्ण का अन्य वर्ग के वर्णो से मेल होने पर अनुस्वार रूप यथावत् रहेगा, जैसे-

संतोष       संयोग

4- चंद्रबिंदु वाले शब्दों को अनुस्वार साथ न लिखा जाए । जैसे –

साँप       ( न कि ‘साप’)    चाँद    (न कि चांद)

 

विसर्ग (अः)  एवं आगत स्वर (ऑ) के मानक रूप

  1. 1-संस्कृत के शब्दों के साथ विसर्ग उसी प्रकार लगाया जाए जिस प्रकार संस्कृत के शब्दों में लगा हो। जैसे –
    अतः पुनः प्रायः  अंततः  क्रमशः  प्रातःकाल  निःस्वार्थ
    हाँ, ‘छः’ और ‘दुःख’ को क्रमशः ‘छह’ और ‘दुख’ लिखा जाए
    2. अंग्रेजी के जिन शब्दों में ‘आ’ और ‘औ’ के बीच की ध्वनि (ऑ) उच्चरित होती हो, उन शब्दों में आगत स्वर (ऑ) की
    मात्रा  (अँ) अवश्य लगाइ जाए । जैसे –
    डॉक्टर,         कॉलेज,         पॉकेट,        फुटबॉल
    आगत स्वर के प्रयोग से कुछ शब्दों के अर्थ स्पष्ट हो जाते हैं।जैसे –
    हाल   = दशा                               माल  =    सामान आदि
    हॉल  =   बड़ा-सा कक्ष                    मॉल   =    ऐसी जगह जहँ कई दुकानें एक ही छत के नीचे बनी हों

 

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