Anuchchhed lekhan kaise sikhe | अनुच्छेद लेखन कैसे सिखे

मेरे प्यारे बच्चों, आप मैं सभी के लिए Anuchchhed lekhan kaise sikhe अनुच्छेद – लेखन ( Paragraph Writing ) का पोस्ट लिखूँगी। जो आप लोगों के लिए बहुत हमत्वपूर्ण है। आज के सभी विद्यार्थीयों को परीक्षा में अनुच्छेद – लेखन दिया जाता हैं। उनकों पहलें से आर्टिकल लिखने के लिए रिहल्सल करया जाता है।

बच्चों, जब हम छोटे शिशु थे, तब हम शुरू में कुछ शब्दों को बोलकर ही अपने विचार प्रकट कर पाते थे । अनुच्छेद – लेखन को समझे  जैसे – जैसे हम बड़ें होते गए, हमने वाक्य बोलकर अपने विचार प्रकट करना प्रारंभ किया।

Anuchchhed lekhan kaise sikhe
Anuchchhed lekhan kaise sikhe

विद्यालय में आकर हमने अपने विचारों व भावों को लिखना सीखा। जब हम किसी विषय पर अपने विचारों या भाव को वाक्यों के लघु समूह ( 100 – 150 ) शब्दों द्वारा लिखते हैं तो वे अनुच्छेद – लेखन ( Paragraph Writing ) कहलाता हैं।

Anuchchhed lekhan kaise sikhe

बच्चों ! आप अपने स्कूल में कौन – कौन सी गतिविधियाँ करते हैं? जैसे – खेल – कूद से संबंधी, सांस्कृतिक कार्यक्रमों से संबंधी और पिकनिक मनाने के लिए बाहर भी जाते हैं। पहाड़ पर चढाई भी करते हैं तो कभी बाल – दिनस, शिक्षक – दिवस आदि भी मनाते हैं अर्थात इन सबके बारे में आप जानते हैं। इस तरह की जानकारी लिखना ही तो अनुच्छेद लेखन कहलाता हैं। अब ये अनुच्छेद पढ़िए ।

अनुच्छेद – लेखन के समय ध्यान में रखने योग्य बातें

  1. जिस विषय पर हमें अनच्छेद लिखना है, ुस पर अच्छी तरह से सोच – विचार करना चाहिए।
  2. अपने विचारों को क्रमबद्ध करके रूपरेखा तैयार करनी चाहिए।
  3. वाक्य छोटे, सरल और स्पष्ट होने चाहिए।
  4. अनुच्छेद को प्रभावशाली बनाने के लिए मुहावरों का प्रयोग करना चाहिए, किन्तु मूल विषय से नहीं हटना चाहिए।
  5. अनुच्छेद – लेखन में निबंध की तरह अलग – अलग पैराग्राफ नहीं होते है।

1. कम्प्यूटर

कम्प्यूटर एक ऐसी मशीन है, जो बिना थके घंटों तक कार्य कर सकती है। यह मशीन हमारी उँगली के एक इशारे पर अपना कार्य आंरभ कर देती है और एक इशारे पर बंद हो जाती है। यह मशीन एक ही समय में एक से अधिक कार्यों को संपन्न करने की योग्यता रखती है।

इतना ही नहीं, यह अकेले ही कई इंसानों के बराबर काम करने की क्षमता रखती है। इस मशीन का आविष्कार ‘चार्ल्स बॉबेज’ ने किया था। यू. पी. एस, सी. पी. यू, माउस, की – बोर्ड, प्रिंटर आदि कम्प्यूटर के महत्वपू्रण अंग है।

इन हार्डवेयर डिवाइस को एक साथ सॉफ्टवेयर की सहायता से जोड़ा जाता है। कम्प्यूटर हमारी विभिन्न क्षेत्र जैसे – पढ़ाई, खेल, खरीदारी, मुश्किल प्रश्नों के हल खोजने, ईमेल, बिल जमा करने, टिकट बुक करने आदि में सहायता करता हैं। इस तरह के सारी सुविधा कम्प्यूटर ही प्राप्त होता है।

कम्प्यूटर का प्रयोग स्कूलों, कालेजों, अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों , सेना आदि में किया जाता है। इस मशीन से इतना फायदा होने के साथ – साथ कुछ हानियाँ भी हैं, कम्प्यूटर के अधिक प्रयोग से आँखों की रोशनी कम होने लगती है।

कभी – कभी सिरदर्द, गरदन दर्द, पीठ में दर्द, कंधों में दर्द की भी समस्या उत्पन्न हो जाती है, परंतु फिर भी कम्प्यूटर विज्ञान की ऐसी देन है, जो हमारा सेवक की भाँति सेवा करने के लिए सदैव तत्पर रहता है।

आज का युग कम्प्यूटर व टेक्निकल युग है, बिना कम्प्यूटर के कोई काम होना असम्भव हो गया है। पढ़ाई से लेकर जॉब तक लोगों को कम्प्यूटर ही चाहिए ।

2. मेरी स्कूल बस 

मैं प्रतिदिन अपने स्कूल अपनी स्कूल बस में जाता हूँ। मेरी स्कूल बस पीले रंग की है। इसके दोनों तरफ बड़े – बड़े  अक्षरों में मेरे स्कूल का नाम लिखा है। मेरे स्कूल में कुल 50 बसें हैं। प्रत्येक बस पर बस का रूट और नंबर लिखा है।

मेरी बस का रूट नंबर – 5 है। हमारे घर के सामने ही इसका एक स्टॉप पर जाकर खड़ा हो जाता हैं और बारी – बारी से बस में चढ़ते हैं। इस कार्य में बस का कंडक्टर सबकी मदद करता है।

बस का ड्राइवर एक कुशल चालक है। वह कभी बस तेज नहीं चलाता । वह सदैव समय पर हमें स्कूल पहुँचाता है। हमारी बस में एक स्कूल अध्यापिका भी अवश्य रहती है, ताकि बच्चे अनुशासित रहें।

स्कूल  की छुट्टी होने पर सभी बच्चे अपनी कक्षाओं से निकलकर अपनी – अपनी बसों की रूट संख्या के अनुसार पंक्ति में खड़े हो जाते हैं और अपनी – अपनी बसों द्वारा अपने गर आ जाते हैं। बस में प्राथमिक चिकित्सा के लिए एक फर्स्ट एड बॉक्स भी रखा होता है।

जिससे यदि किसी बच्चे को चोट लग जाए तो उसका  तुरंत उपचार हो सके । मेरे स्कूल के अन्य कक्षाओँ के छात्र भी बस में मेरे साथ ही सफर करते है। मुझे उनके साथ सफर करना बहुत अच्छा लगता है।

3. रक्षाबंधन 

भारत एक विशाल देश है। यहाँ बहुत से त्योहार मनाए जाते हैं जैसे – होली, दीवाली, ईद, क्रिसमस आदि। उनमें से रक्षाबंधन एक प्रमुख त्योहार है। यह श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई – बहन के प्रेम का प्रतीक है।

त्योहार से कुछ दिन पहले ही दुकानों पर राखियाँ सज जाती हैं। तरह – तरह की मिठाइयाँ मिलने लगती हैं। इस त्योहार के विषय में एक कथा प्रसिध्द हैं- चित्तौड़ की महीरानी कर्मवती ने अपने राज्य के सम्मान की रक्षा के लिए बादशाह हुमायूँ राखी भेज कर सहायता माँगी थी।

हुमायूँ भी अपनी बहन की रक्षा के लिए चला आया था। इस दिन बहनें पूजा की थाली में मिठाई, रोली व राखियाँ सजाकर भाई को तिलक लगाकर उनकी कलाई पर राखी बाँधती है। भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं।

यदि भाई दूर होता है तो बहनें डाक द्वारा राखी भेजती हैं और भाई के मगंल की कामना करती हैं। भाई भी अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है। इस दिन घरों में पकवान बनाए जाते हैं। यह त्योहार  प्रेम व पवित्रता का संदेश देता हैं।

4. खेलो का महत्व 

हमारे जीवन में खेलों का महत्वपूर्ण स्थान हैं। खेल कई प्रकार के होते हैं । जैसे – कबड्डी, खो – खो, लूडों कैरमबोर्ड , टेबल – टेनिस, हॉकी, क्रिकेट, फुटबॉट आदि। इनमें से कई खेल घर के अंदर रहकर खेले जाते हैं तो कई खेल  खुले मैदानों में खेले जाते हैें ।

घर के अन्दर खेले जाने वाले खेल हैं – लूडों , कैरमबोर्ड, शतरंज, वीडियो गेम्स इत्यादि । इन खेलों से बौद्धिृक क्षमता का विकास होता हैं। खुले मैदानों में खेले जाने वाले खेल हैं – हाकी, क्रिकेट, फुटबॉल इत्यादि । खेलों से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है।

हमारी हड़्डियाँ और मांसपेशियाँ मजबूत बनती हैं। खेलों के द्वारा हमारी एकाग्रता बढ़ती हैं। हम अनुशासन में रहना सीखते हैं। खेलों द्वारा मानसिक और शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि होती हैं।

आजकल खेलों  के द्वारा धन कमाने के साधन भी उपलब्ध हो गए हैं। इस प्रकार खेलों का  हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे हमें समझना चाहिए। 

5. माँ 

अहा! कितना प्रिय शब्द है – माँ, माँ को माता, जननी, अम्मा, अंबा, मैया, मातुश्री, मम्मी आदि इसके अनेक नाम हैं। जन्म देना, दूध पिलाना, आप गीले पर सोना – शिशु को  सूखे पर सुलाना, शिशु के बीमार होने पर सारी रात जागना, आप कष्ट सहना, परंतु बच्चे का कष्ट सहना, माँ तेरे उपकारों का बदला हम कैसे दे सकते हैे ?

माँ से बढ़कर कोई प्यार नही कर सकता । इसलिए बीमार या घायल होने पर हमारे मुँह से हाय पिता नही, बल्कि हाय माँ ही निकलता हैं । जो माँ की सेवा नही करता, उसकी आज्ञा नही मानता, वह मनु्ष्य कृतघ्न हैं।

माँ से बढ़कर इस दुनियाँ को नही होता है। माँ ही एक अच्छी दोस्त होती हैं सारी बात को समझती हैं। मेरे दुख को बहुत गहरा से जाती हैं। मांँ का कितना ही गुण लिखूँ तब भी सारा कम हैं माँ का कर्ज को नहीं दे पाता है।

6. किसान 

कृषक, किसान, खेतिहर – इन शब्दों का , एक ही अर्थ हैं। किसान सारे समाज का अन्नदाता और वस्त्रदाता हैं। बैल किसान का प्रिय साथी है। हल , जुआ, हँसिया, बैलगाड़ी आदि उसके साधन हैं। खेती से उसे प्यार हैं। वह खुली हवा में रहता है। धूप , आँधी, पानी की परवाह किये बिना वह अपना काम करता रहता है।

वह हल चलाता है, बीज बोता है, रहट चलाता है, खेतों को सींचता है, निराई करता है और पशु – पक्षियों से फसल की रक्षा भी करता हैे। फसल पक जाने पर हँसिया या दराँती से उसे काटता है। पशुओं के लिए भूसा और चारा अलग करता हैं।

अनाज हो या दालें, तिलहन ( तेल बीज ) हो या कपास, ये सब किसान की ही देन हैं। जवान ( सेनिक ) देश की रक्षा करता हैं। किसान समाज का पालन करता  है। इसीलिए श्री लालबहादुर शास्त्री ने कहा था – जय जवान, जय किसान।

7. सैनिक

सैनिक को, फौजी या जवान भी कहते है। इसकी पोशाक ( वर्दी ) देखकर मन खुश हो जाता है। यह अनुशासन का पालन करता है। यह निर्भय होता है। अपने अधिकारी ( अफसर ) की आज्ञा मानने से यह कभी इनकार नहीं करता।

सैनिक में देशभक्ति, देश – सेवा की भावना कूट – कूट कर भरी होती है। वह अपनी जान हथेली पर रखकर देश की रक्षा करता है। सरदी हो या गरमी, ओले पड़ रहे हों या कड़कती धूप हो, गोलियाँ चल रहीं हों या बम बरस रहे हों – सैनिक अपने कर्तव्य से मुँह नहीं मोड़ता।

जब देश पर कोई शत्रु आक्रमण करता है और युद्ध का बिगुल बज जाता है। तब सैनिक अपने माँ – बाप, पत्नी, नन्हें – मुन्नों का मोह त्यागकर देश – रक्षा के लिए चल पड़ता हैं। वह अपने प्राणों की परवाह न करके देश की रक्षा करता  है। सैनिक धन्य है। भारत के प्रत्येक सैनिक पर हमें गर्व है।

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