हाय मेरे प्रिय मित्र मेरा आज आर्टिकल हैं वर्ण – विचार जो कक्षा – 1 से लेकर कक्षा – 5 तक के बच्चों को बहुत ही बारीकी से सिखाया जाता है। स्कूल के टीचर्स शुरू में पहले स्वर मात्रा, व्यंजन, और वर्ण – विचार से ही पढ़ाया स्टार्ट करते है। हिन्दी भारत का राष्ट्रभाषा हैं। जो भारत के हर राज्य में बोले जाने वाला भाषा है। इसलिए सभी बच्चों को हिन्दी सिखना, पढ़ना अनिवार्य है।
तो दोस्तों वर्ण – विचार का आर्टिकल मैं आप लोगों को बहुत ही बारीकी से बल्की सरल भाषा में समझाया जायेगा। जो समझने में काफी असान होगा। उत्तर भारत में हिन्दी पढ़ना सभी बच्चों अनिर्वाय होता है। चाहे C.B.S.C Board हो या कोई भी बोर्ड हो हिन्दी पढ़ना कम्पल्सरी है।
आपको पता है । सही उच्चारण की अनिवार्य रूप से जानकारी जिन ध्वनियों को माध्यम से होती है, उन्हे वर्ण कहते है। लोग जब बोलते है, तो बोलने के लिए जिन ध्वनियों का प्रयोंग करते है, वे ही वर्ण है।
जब प्रश्न यह उठता है कि वर्ण – विचार बनते कैसे हैं ? सच में वर्णों के मूल में काम करती है। अक्षरो की ध्वनि, इस ध्वनि में अक्षर अर्थात स्वर हैे।स्वर की ध्वनि व्यंजन अर्थात क, ख, ग, घ……..में दो प्रकार से शामिल हैं। पहली है- उनकी स्थायी ध्वनि तो दूसरी मात्राओं के रूप में, परंतु है, ध्वनियाँ ही। अतः वर्ण बनते हैं। वर्ण – विचार के साथ- साथ एक इट्रेस्टींग कहानी भी उपलब्ध कराई हूँ । जो है बाघ फिर से चूहा बना इसे आप जरूर पढ़ लिजिएगा।
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कक्षा- 5 का हिन्दी व्याकरण वर्ण
तो दोस्तों छोटे विद्यार्थी को जिनते ही सरल तरीका से बताएगें उतना ही अच्छा होगा चलिए देखिए मेरा तरीका कैसा लगा? , मुख से उच्चारित ध्वनियों को हम जिन चिन्हों द्वारा अंकित करते है, उन्हे वर्ण कहते है।जैसे – गाय, पौधा तो इन नामों को बोलते समय हमारे मुख से अनेक ध्वनियाँ निकलती है। इन्ही छोटी- छोटी ध्वनियों को वर्ण या अक्षर कहते है।
वर्णों के भेद
ध्वनियों के उच्चारण के आधार पर वर्णों के दो भेद हैं –
1.- स्वर 2.- व्यंजन
1- स्वर किसे कहते है?
जिन ध्वनियों को बोलने के लिए हमें किसी अन्य ध्वनि की सहायता नहीं लेनी पड़ती तथा उन्हें बोलते समय हवा बिना किसी बाधा के मुँह से निकलती है, उन्हे स्वर कहते हैं। वास्तव में स्वर स्वतंत्र ध्वनियाँ हैं। हिन्दी भाषा में कुल ग्यारह स्वर हैं। अ से लेकर औ तक का स्वर
अनुस्वार
‘अ’ को अनुसार कहते है। यह न तो स्वर होता है और न ही व्यंजन। इसलिए वर्णमाला में इसें स्वरों के बाद और व्यंजनों से पहले लिखा जाता है, इसलिए इसे ‘ग्याोगवाह’ कहते है। इसका उच्चारण करते समय हवा हमारी नाक से निकलती है और ‘न’ की ध्वनि उत्पन्न होती है। इसका चिन्ह ( -ं ) है।
बच्चों, इसका प्रयोग व्यंजन माला के पाँच वर्ग – कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग और पवर्ग के अंतिम अक्षरों के स्वर रहित अर्थात् ‘अ’ रहित रूप को दिखाने के लिए बिंदी रूप में भी किया जाता है।
कवर्ग – क ख ग घ ड. अड़्क = अंक
चवर्ग – च छ ज झ ञ मञ्जन = मंजन
टवर्ग – ट ठ ड ढ ण घण्टा = घंटा
तवर्ग – त थ द ध न हिन्दी = हिंदी
पवर्ग – प फ ब भ म सम्बन्ध = संबंध
अनुनासिका
‘अँ’ को अनुनासिका कहते हैं। यह नासिक्य ध्वनि है। इसका उच्चारण करते हवा नाक और मुख दोनों से एक साथ बाहर निकलती है। इसका चिन्ह ( -ँ ) है जिसे चन्द्रबिंदु कहते है। इसे ‘ऋ’ को छोड़कर अन्य सभी स्वरों के साथ उच्चारित किया जाता है। जैसे- अँ, आँ, इ ि ई ी , उँ , ऊँ ए े ऐ ै ओ ों औ ौं
विसर्ग
‘अः’ को विसर्ग कहते हैं। इसका उच्चारण करते समय ( ह ) की ध्वनि निकलती है। इसका चिन्ह ( ः ) है। हिंदी भाषा में इसका प्रयोग वहाँ किया जाता है, जहाँ संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग होता है तथा हमेशा व्यंजनों के बाद लिखा जाता है। जैसे – प्रातः, अतः, अधः, + गति = अधोगति, दुः लभ = दुर्लभ आदि।
आगत ध्वनियाँ
- ‘ऑ ’ ( -ॉ ) यह ध्वनि अंग्रेजी भाषा से हिन्दी भाषा में आई है। इसका चिन्ह ( -ॉ ) है। जौसे – बॉल, मॉल, हॉल, डॉक्टर आदि।
- ज़ /फ़ यह ध्वनियाँ अरबी – फारसी भाषा से हिंदी भाषा में आई हैं। इनका उच्चारण हिंदी के ‘ज’ और ‘फ’ वर्ण से भिन्न होता है। इन ध्वनियाँ के प्रयोग से शब्द के अर्थ में अंतर आ जाता है।
जैसे – सज़ा = दंड, ज़रा = थोड़ा
सजा = सजाना, जरा = बुढ़ापा
व्यंजन ( Consonants )
जिन ध्वनियों को बोलने के लिए अन्य स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है, उन्हें व्यंजन कहते है। इनके बोलते समय हवा मुख के किसी भाग से टकराकर बाहर आती है। सभी व्यंजनों को बोलने के लिए ‘अ’ स्वर का प्रयोग होता है। ‘अ’ स्वर के बिना व्यंजनों को लिखने के लिए उनके नीचे ( ् ) हलंत चिह्न लगाया जाता है। इनकी मूल संख्या 33 है।
संयुक्त व्यंजन ( Cluster )
हिन्दी भाषा में शब्दों का निर्माण दो व्यंजनों के योग से भी होता है। व्यंजन वर्णों का योग निम्न तीन तरह से होता है।
( क ) दो जुड़े व्यंजन ( रूप/आकृति बदलता )
क् + ष = क्ष, त् + र = त्र, ज् + ञ = ज्ञ, श् + र = श्र
कक्षा त्रिशूल ज्ञानी श्रमिक
इस प्रकार के दो व्यंजनों के मेल में पहला व्यंजन स्वर रहित, किंतु दूसरा व्यंजन स्वर सहित होता है। इन्हें संयुक्ताक्षर भी कहते है।
( ख ) दो जुड़े व्यंजन ( समान )
क् + क् + अ = क्क च् + च् + अ = च्च, त् + त् + अ = त्त
मक्का बच्चा पत्ता
जिस किसी शब्द में एक ही व्यंजन दो बार आता है, तो उसे द्वित्व व्यंजन कहते है। इसमें पहला व्यंजन स्वर रहित और दूसरा व्यंजन स्वर सहित होता है। जैसे – हड्डी, गन्ना, डिब्बा, बिल्ली, सच्चा आदि
वर्णमाला
बच्चों , जब किसी भाषा की सभी ध्वनियों के लिखित रूप को एक निश्चित क्रम में रखा जाता है तो उसे वर्णमाला कहते हैं।
वर्णों का क्रमबद्ध समूह वर्णमाला कहलाता है।
मात्राएँ ( Vowel symbol )
बच्चों, हिन्दी भाषा में स्वर और व्यंजनों के मेल से ही शब्द बनते हैं। किंतु शब्दों के निर्माण मेंं व्यंजनों के साथ स्वरों का मेल अपने मूल रूप में नहीं किया जाता । जरा पढ़कर देखो
आमअ फअलओअं कआ रआजआ हऐ।
क्या हुआ ! कुछ समजमें नहीं आया न!
अब पढ़ों – आम फलों का राजा है। बच्चों, पहले वाक्य में स्वर अपने मूल रूप से व्यंजनों के साथ जुड़े है। किंतु दूसरे वाक्य में स्वर अपने निश्चित चिन्हों के रूप में व्यंजनों के साथ आए हैं जिसे आप भली भांति समझते हैं। स्वरों के ये निश्चित चिन्ह मात्राएँ कहलाते हैं। अतः हमने जाना- स्वरों के निश्चित चिन्ह मात्राएँ कहलाते हैं।
वर्ण संयोजन ( Joining of letters )
म् + इ + त् + र् + अ् + त् + आ = मित्रता औ + र् + अ + त् + अ = औरत
स् + व् + आ + ग् + अ + त् + अ = स्वागत ई + श् + व् + अ + र् + अ = ईश्वर
वर्ण विच्छेद ( Disjoining of letters )
बच्चों, जब किसी शब्द में आई ध्वनियों ( वर्णों ) को अलग – अलग करके लिखते हैं, तो उसे वर्ण – विच्छेद कहते हैं। इसमें व्यंजन को स्वर के बिना नीचे हलंत ( ् ) लगाकर लिखा जाता हैं।
जैसे- माइंड मैप ( Mind Map )
1.- भाषा की सबसे छोटी ध्वनि का लिखित रूप वर्ण है।
2.- वर्ण दो प्रकार के हैं- 1 स्वर 2 व्यंजन
3.- स्वर और व्यंजनों का क्रमबद्ध समूह वर्णमाला कहलाता है।
4.- स्वरों के निश्चित चिन्हों को मात्रा कहते है।
5.- स्वर तथा व्यंजन के सार्थक मेल से शब्द बनते है
तो बच्चों अब आप लोग वर्ण के बारे में जानकारी समझ में आ गया होगा। चलो एक मजेदार कहानी भी पढ़ लिया जाए । बाघ फिस से चूहा बना।
एक ऋषि नदी के किनारे एक झोपड़ी में रहते थे। एक दिन एक कौआ उड़ता – उड़ता वहाँ से गुजर रहा था। उसकी चोंच में एक चूहा था। अकस्मात कौए की चोंच से वह चूहा ऋषि की झोंपड़ी के आगे गिर गया। वह जिंदा था। ऋषि ने अपने कमंडल से उस पर पानी छिड़का। थोड़ी देर में चूहा कुछ स्वस्थ हुआ।
अब वह चूहा ऋषि के साथ ही रहने लगा। एक दिन वहाँ कहीं से एक बिल्ली आ गई। चूहा उसे देख कर घबराया और दौड़ कर ऋषि की गोद में छिप गया। ऋषि बोले, तुझे बिल्ली से डरने की जरूरत नहीं है। मैं तुझे ही बिल्ली बना देता हूँ। ऋषि ने मंत्र पढ़ कर चूहे पर पानी छिड़का। इससे चूहा बिल्ली बन गया।
कुछ दिनों के बाद वहाँ एक कुत्ता आया। उसे देख कर बिल्ली डर गई और दौड़ कर ऋषि की गोद में दुबक गई। ऋषि बोले, तुझे कुत्ते से डरने की जरूरत नहीं है। मैं तुझे ही कुत्ता बना देता हूँ। ऋषि ने मंत्र पढ़ कर बिल्ली पर पानी छिड़का। इससे बिल्ली कुत्ता बन गई।
एक दिन एक बाघ नदी में पीने पीने के लिए आया। उसने कुत्ते को देख लिया। देखते ही वह उसे मारने लपका। कुत्ता घबराकर दैड़ा और ऋषि के गोद में छिप गया । ऋषि बोले कुत्ते तुझे बाघ से डरने की जरूरत नहीं है। मैं तुझे ही बाघ बना देता हूँ । ऋषि ने मंत्र पढ़ कर कुत्ते पर पानी छिड़का। कुत्ता फौरन बाघ बन गया।
ऋषि के आश्रम में उनके दर्शन करने बहुत – से लोग आते रहते थे। वे बाघ को देख कर आपस में बातें करते, यह सचमुच बाघ नही है, कुत्ता है। अरे, यह तो कुत्ता भी नहीं, बिल्ली है। कोई कहता, अरे भाई यह बिल्ली नहीं, चूहा है। ऋषि ने ही इसे चूहे से बाघ बनाया है।
बाघ ने सोचा, लोग मेरे बारे में इस प्रकार बाते करते है, यह ठीक नही है। ऋषि के कारण ही मेरी बदनामी हो रही है। मैं ऋषि को ही मार डालता हूँ।
ऋषि बाघ के मन की बात समझ गए। उन्होने हाथ में पानी लिया, मंत्र पढ़ा और बाघ के ऊपर छिड़का । फौरन बाघ फिर से चूहा बन गया। अब चूहा पछताने लगा।
तो दोस्तो ये कहानी आप लोगो कैसा लगा अगर अच्छा लगा हो, आप अपने और दोस्तों को सेयर किजिए ताकि पढ़कर अपने बच्चों पढ़ए, और अपने को सुनाए।