किसी जंगल में एक शेर रहता था। एक बार वह अपनी माँद से शिकार करने के लिए निकला । उसने देखा कि एक खरगोश उसकी माँद के पास ही एक वृक्ष के नीचे खेल रहा है। शेर जैसे ही उसपर झपटने वाला था कि उसे एक हिरण दिखाई दिया ।शेर ने सोचा – खरगोश ते बहुत छोटा है। इससे मेरा पेट भी नही भरेगा । हिरण बड़ा है, उसी को मारना चाहीए । खरगोश को छोड़कर वह हिरण के पीछे दौड़ पड़ा ।
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आ की मात्रा वाली कहानी
हिरण ने दूर से ही शेर को देख लिया था । बहुत तेज दौड़कर वह शेर की आँखों से ओझल हो गया । शेर जब हिरण को नहीं पकड़ पाया तो वह मन ही मन सोचने लगा – हिरण का पीछा करना बेकार है । अब मुझे खरगोश के पास ही लौट जाना चाहिए । उसको खाने से मेरा कुछ तो पेट भरेगा । शेर जब लौटकर वापस आया तो वहाँ खरगोश नहीं था। वह सोचने लगा – खरगोश यहीं कहीं छिपा होगा। अतः उसकी तलाश करनी चाहिए वह मुझसे बचकर कहाँ जा सकता है?
शेर खरगोश की तलाश करने लगा। उसने माँद के अंदर झाँका और माँद के बाहर देखा । उसे कहीं भी वह खरगोश नहीं दिखा । खरगोश तो शेर जाते ही वहाँ से भाग गया था । शेर बड़ा निराश हुआ। हिरण और खरगोश दोनों ही उसका भोजन बनने से बच गए थे ।
शेर बहुत पछताया वह कई दिनों तक भूखा ही रहा ।
ई की मात्रा वाली कहानी गिलहरी का घर
विषेश – बच्चो का ध्यान आकृष्ट कीजिए कि इस कविता में समान वर्ण के मेल से बने संयुक्ताक्षर वाला शब्द आए हैं।
एक गिलहरी एक पेड़ पर,
बना रही है अपना घर।
देख – भालकर उसने पाया,
खाली है उसका कोटर।
कभी इधर से, कभी उधर से,
फुदक – फुदक घर-घर जाती।
चिथड़ा , गुदड़ा, सुतली , तागा,
ले जाती जो कुछ वह पाती ।
ले जाती मुँह में दाबे वह ,
कोटर में रख – रख आती।
देख बड़ा सामान इकट्ठा,
किलक – किलक वह गाती।
ओ की मात्रा वाली कहानी छोटी चुहिया
विषेश – बच्चों का ध्यान आकृष्ट कीजिए कि इस कहानी में संयुक्ताक्षर वाले शब्द आए हैं।
एक नन्ही चुहिया थी । वह भूखी थी उसने तीन दिनों से कुछ खाया नहीं था । वह भोजन की तलाश में इधर – उधर भटक रही थी । उसे खाने को कुछ नहीं मिला था जिससे वह दुबली हो गई थी । उसकी हड्डियाँ तक दिखाई देने लगी थीं।
एक दिन चुहिया को एक टोकरी दिखाई पड़ी । टोकरी में मक्के रखे थे । टोकरी का ढक्कन बंद था । वह अंदर घुसे तो कैसे।
चुहिया की नजर टोकरी के छेद पर पड़ी । चुहिया खुश हो गई । छेद के रास्ते चुहिया टोकरी के अदंर घुस गई और लगी मक्के के दाने खाने । कई दिनों से भूखी होने के कारण वह दाने खाती गई, खाती गई । उसने इतने दाने खा लिए कि वह फूलकर कुप्पा हो गई । उसका पेट गुब्बारे जैसा फुल गया था। चुहिया जब छेद से बाहर निकलने लगी तो निकल ही नही पाई। उसने कई बार प्रयास किया पर टोकरी से निकल नहीं सकी । तब वह रोने लगी।
चुहिया के रोने की आवाज नम्रता ने सुनी। वह एक छोटी –सी- बच्ची थी । उससे चुहिया का दर्द न गया । उसने टोकरी का ढक्कन खोल दिया । चुहिया तेजी से निकली और ड्रम के पीछे छिप गई
ए की मात्रा वाली कहानी देशभक्त गोखले
नैतिक मूल्य – देशभक्ति, लालच न करना, सच्चाई व परोपकार की भावना
कक्षा में अध्यापक जी एक पाठ पढ़ा रहे थे । पाठ का नाम था – हीरा बड़ा या कोयला । इस पाठ में हीरा और कोयला अपने – आप को बड़ा साबित करने में लगें थे । हीरा कह रहा था कि वह बहुत मूल्यवान है।
इसी बीच अध्यापक जी ने पूछा – किसी आदमी का हीरा खो गया हों । तुम्हें वह हीरा राह में मिले तो बताओ कि तुम क्या करोगे ।
एक बालक ने कहा – हीरा बेचकर मैं कार खरीदूँगा । दूसरे बालक ने कहा – उसे बेचकर मैं धनवान बन जाऊँगा ।
तीसरे बालक ने कहा – हीरे के मालिक का पता लगाकर उसे हीरा लौटा दूँगा ।
अध्यापक जी ने उससे पूछा – यदि हीरे का मालिक न मिला तो ? उस अध्यापक का नाम गोपाल कृष्ण गोखले था ।
उसने कहा – तब इसे बेच दूँगा और जो पैसे मिलेगें , उनसे देश की सेवा करूँगा ।
अध्यापक जी गोपाल का उत्तर सुनकर खिल उठे । उन्होंने बालक गोपाल को अपने पास बुलाया । अध्यापक जी ने शाबाशी देते हुए कहा – बेटा, तुम बड़े होकर अवश्य नाम कमाओगे ।
अध्यापक महोदय की बात सही साबित हुई । बड़ा होने पर गोपाल कृष्णा गोखले की गिनती भारत के महान के महान लोगों में होने लगी ।
अं की मात्रा वाली कहानी जंगल में दोस्ती
नैतिक मूल – दया, करूणा, मित्रता, मिल-जुलकर रहने की भावना
एक जगंल था । वहाँ शेर का एक बच्चा रहता था । नाम था उसका – शीरू । शीरू उदास रहता था । जंगल के जितने जानवर थे, उनके बच्चे शीरू से डरते थे । एक दिन की बात है । शीरू अपनी गुफा के बाहर बैठा था । उसे किसी के कराहने की आवाज सुनाई पड़ी । आवाज झाड़ी के पीछे से आ रही थी ।
शीरू झाड़ी के पीछे गया । उसने देखा कि चंदा के पैर में काँटा चुभ गया है । चंदा हिरणी की बच्ची थी । शीरू ने उसके पैर से काँटा निकाल दिया ।
चंदा हैरान होकर शीरू को देखने लगी । शीरू ने पूछा – मुझसे दोस्ती करोगी । मैं शीरू हूँ ।
चंदा चहक उठी और बोली – हाँ शीरू आज से हमारी – तुम्हारी दोस्ती पक्की । चंदा और शीरू की दोस्ती की बात जंगल में फैल गई । धीरे – धीरे जंगल के सारे बच्चे शीरू के दोस्त बन गए । अब शीरू हमेशा प्रसन्न रहने लगा था ।
आ की मात्रा वाली लघु कहानी लालची राजा
नैतिक मूल्य – वात्सलल्य – प्रेम, लालच पर नियत्रंण
एक राजा था । वह बड़ा लालची था । उसके खजाने में सोने – चाँदी भरे पड़े थे । फिर भी, उसका मन नहीं भरा था । वह चाहता था कि दुनिया भर का सोना उसके पास आ जाए ।
एक बार राजा ने सपना देखा कि कुबेर देवता उसके पास खड़े। कुबेर देवता ने राजा से कोई एक वरदान माँगने को कहा।
राजा ने कहा – हे देव मेरे पास खूब सोना हो जाए ।
कुबेर देवता ने राजा को वरदान दिया कि वह जिस चीज को छुएगा, वह सोने की बन जाएगी । सुबह होने पर राजा ने सबसे पहले पलंग छुआ। वह सोने का बन गया । राजा यह देखकर प्रसन्न हो गया कि उसका सपना सच जो हो गया था ।
उसने देखा कि वह जिन-जिन चीजों को छूता जाता, वही सोने की बन जाती । यह देखकर राजा जोर –जोर से पागलों की भाँति हँसने लगा ।
राजा की हँसी सुनकर उसकी इकलौती बेटी वहाँ आ गई । राजा ने प्रसन्नता से अपनी बटी का हाथ पकड़ा । अगले ही क्षण राजा की हँसी छू – मंतर हो गई । उसकी बेटी भी सोने की मूर्ति में बदल गई थी ।
राजा दुखी होकर देवता को पुकारने लगा । इस बार देवता सचमुच प्रकट हो गए । राजा ने उनसे विनती की – हे देव आप अपना वरदान वापस ले लीजिए । मैं लालच में अंधा हो गया था । अब कभी लालच नहीं करूँगा। ऐसा ही हो – ऐसा कहकर देवता ओझल हो गए। उसी क्षण राजा की बेटी जीवित हो उठी । इतना ही नहीं जो- जो चीजें सोने की बन गई थीं, वे सब भी असली रूप में आ गईं।
उस दिन के बाद, राजा ने कभी लालच नहीं किया।
प्रश्न – राजा का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर – राजा का स्वभाव लालची था ।
प्रश्न – राजा ने अपनी बेटी को छुआ तब क्या हुआ ?
उत्तर – राजा के छुने पर उनकी बेटी सोने की मूर्ति में बदल गई ।
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