कक्षा – 5 का निबन्ध दीपावली प्रदूषण भारत की राजधानी || Class-5 ka Essay

हाय मेरे प्रिय बच्चों मैं आप लोगों के लिए आज कक्षा – 5 का  निबन्ध का आर्टिकल लिखूँगी। जो परीक्षा में पूछे जाते है। स्कूल में टीचर सभी विद्यार्थी को निबन्ध लिखने को सिखाते है। और होमवर्क भी देते हैं। तो मैं आप लोगो को इस पोस्ट में निबन्ध लिखने के लिए सभी निबन्ध के अंग को समझाऊँगी। निबन्ध का शाब्दिक अर्थ है- अच्छी तरह से बँधी हुई रचना

देखिये बच्चों  हम किसी विषय पर निबंध लिखते हैं, तब उस विषय पर हमें अपने ज्ञान के साथ – साथ अपने विचारों और भावों तथा व्यक्तिगत अनुभवों का सामंजस्य बैठाकर लेखन करना होता है। यही कारण हैं कि भिन्न – भिन्न व्यक्तियों द्वारा एक ही विषय पर लिखा गया निबन्ध अलग होता है।

कक्षा-5 का निबन्ध दीपावली, प्रदूषण, भारत की राजधानी
कक्षा-5 का निबन्ध दीपावली, प्रदूषण, भारत की राजधानी

निबन्ध के अंग 

किसी भी विषय पर निबन्ध लिखने से पहले उसे तीन भागों में बाँटना चाहिए।

1- आरंभ/ भूमिका / प्रस्तावना – यह निबंध का प्रवेश द्वार है। कोई निबंध तभी अच्छा माना जाता है, जब आरंभ अच्छा होना। निबंध का यह भाग ही पाठकों को निबंध आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

2- मध्य/ विस्तार/प्रतिपादन – यह निबंध का मध्य भाग है। इस भाग में निबंध की विषय वस्तु से संबंधित जानकारी को अलग- अलग अनुच्छेदों में प्रकट किया जाता है। इस बात का विशेष ध्यान रखा जात है। कि कौन – सी जानकारी परहले और कौन – सी बाद में आना चाहिए।

3- निष्कर्ष/ उपसंहार – यह निबंध का अंकिम भाग है। इस भाग में निबन्ध का सारांश प्रस्तुत किया जाता है। अतः निबंध के मूल भाव को इस तरह से प्रस्तुत करना चाहिए कि वह पाठकों पर अपना प्रभाव छोड़ सके।

निबन्ध लिखते समय ध्यान में रखने वाली बातें 

1- जिस विषय पर निबंध लिखना है, उससे संबंधित सारी जानकारी एकत्र कर लेनी चाहिए।

2- शब्द सीमा को ध्यान में रखकर निबंध को मुख्य – बिन्दुओं में बाँट लेना चाहिए।

3- मुख्य बिदुंओ को अलग – अलग अनुच्छेदों में व्यक्त करना चाहिए।

4- यथास्थान, विषय से संबंधित मुहावरों, लोकोक्तियों, कविताओं अथवा कथनों को निबंध में शामिल करना चाहिए।

5- किंतु अनावश्यक बातों द्वारा निबंध को बड़ा नही करना चाहिए।

6- निबंध की भाषा सरल, सहज और सारगर्भित होनी चाहिए।

दीपावली 

कितने प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं?

हमारे देश में कई त्योहार मनाए जाते है, क्योकिं यहाँ विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं। लोहड़ी, होली, दशहरा, दीपावली, रक्षाबंधन, गुरूपर्व, जन्माष्टमी, ईद, क्रिसमस आदि प्रमुख त्योहार है, जो हमारे देश में समय- समय पर मनाए जाते है, किंतु दीपावली के त्योहार की बात ही कुछ निराली है। यह त्योहार स्वच्छता और रोशनी का प्रतीक है।

दीपावली कब मनाया जाता है?

यह त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या , जो कि अक्टूबर या नवंबर माह में आती हैं, कार्तिक के अमवस्या के दिन मनाया जाता है। माना जाता हैं कि इस दिन भगवान राम 14 वर्ष का बनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने अमावस्या की उस काली रात को घी के दीपक जलाकर रोशनी की थी। तब से यह त्योहार दीपों की अवली यानी दीपावली के नाम से मानाया जाने लगा। इसका दूसरा नाम दीवाली है।

वास्तव में दिपावली का त्योहार पाँच दिवसीय त्योहारों की लड़ी है। इनके नाम क्रमानुसार – पहला दिन धनतेरस,   दूसरा दिन नरक चौदस ( छोटी दीपावली ),   तीसरा दिन लक्ष्मी पूजन, चौथा दिन गोवर्धन पूजा और पाँचवा दिन भैया दूज होता है।

दीपावली कैसे मनाया जाता है?

त्योहार के आगमन से पूर्व ही लोग अपने घरों, दुकानों और आस – पास की साफ – सफाई में जुट जाते हैं। घर की अंदरूनी और बाहरी दीवारों की रंगाई – पुताई कर, उन्हें साफ व स्वच्छ बनाते हैं, जिससे चारों ओर स्वच्छता का वातावरण बन जाता है।

इस त्योहार पर बाजारों को भी विशेष रूप से सजाया जाता है। लोग अपने सगे- संबंधियों को उपहार भेंट करते हैं। रात्रि के समय लक्ष्मी – गणेश जी की पूजा अर्चना कर दीप प्रज्वलित करते हैं। आजकल दीपों के साथ- साथ रगं – बिरंगी मोमबतियों और बिजली की लड़ियों का चलन भी बढ़ गाय है। घर में तरह – तरह के पकवान परोसे जाते है। बच्चें भाँति – भाँति के पटाखे जलाकर अपनी खुशी प्रकट करते हैं।

इस त्योहार पर चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण दिखाई देता है। अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह त्योहार समाज में उल्लास और प्रेम का संदेश देता है।

प्रदूषण 

प्रदूषण का अर्थ है –

दूषित अर्थात गंदा। जब हमारे आस – पास के वातवरण में गंदगी शामिल होकर हमें निकसान पहुँचाने लगती है तो उसे प्रदूषण कहते है। वातावरण से तात्पर्य है- भूमि, जल और वायु इन तीनों तत्वों के मेल से बना वातावरण।

जब वातावरण के इन तीनों तत्वों में से किसी एक तत्व में भी गंदगी आ जाती है तो उसका प्रभाव अन्य दोनों तत्वों पर भी पड़ता है। वर्तमान में इन तीनों ही तत्वों में प्रदूषण उत्पन्न हो चुका है, जिसका प्रभाव एक दूसरे पर पड़ने के कारण प्रदूषण की समस्या विकराल हो गई है।

भूमि प्रदूषण

जब हम भूमि प्रदूषण की बात करते है तो इसका अर्थ केवल नगरों और शहरों द्वारा उत्पन्न होने वाले कूड़े – करकट से नही है, बल्कि किसानों द्वारा खेतो में अपनी पैदावार बढ़ाने के उद्देश्य से कीटनाशकों के अत्यधिक छिड़काव से भी है जिस कारण मिट्टी की उर्वरक क्षमता नष्ट हो रही है। साग – सब्जियों के पोषक तत्व  नष्ट हो रहे है।

जल प्रदूषण

जल प्रदूषण से तात्पर्य है, हमारी नदियों, झीलों, तालाबों और समुद्रों के जलका दूषित होना । शहरीकरण और औद्योगिकरण के फलस्वरूप घरों और फैक्टरियों से निकलने वाले कचरे को बिना संवर्द्धन किए सीधे नही – नालों में डाल दिया जाता है और यह पानी समुद्र में पहुँचकर समुद्री जीव – जंतुओं को नुकसान पहुँचाता है। केवल यही नहीं, इससे मीठे पानी के स्रोत भी दूषित हो जाते हैं।

वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण का अर्थ है- हवा में हानिकारक गैसों की मात्रा बढ़ जाना। यह हानिकारक गैस है। कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड। यह हमारी फैक्टरियों कारखानों द्वारा हमारे वातारण में आती है। हमारे वाहनों द्वारा भी हानिकरक गैसें जैसे सल्फरहाईड ऑक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड आदि का उत्सर्जन होता है जो हमारे वातावरण को दूषित कर देती है। जब हम दूषित हवा में साँस लेते हैं तो हम अस्थमा, निमोनिया, एलर्जी, फेफडे और हदय रोग आदि का शिकार हो जाते है।

भूमि, जल और वायु तीनों ही प्रदूषणों के कारण हमारे स्वास्थ पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। अतः प्रदूषण की समस्या का हल किसी एक देश की सरकार द्वारा नहीं किया जा सकता। इसके लिए विश्व के प्रत्येक व्यक्ति को अपने – अपने स्तर पर प्रयास करना होगा।

यदि चाहते हैं हम जीवन की सुरक्षा, तो करनी होगी प्रदूषण से स्वयं की सुरक्षा । 

भारत की राजधानी 

भूमिका

ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा विद्यार्थियों के लिए बड़ी लाभप्रद है। ऐतिहासिक स्थलों पर पहुँच कर पहुँच हम स्वयं,  मानो इतिहस का अंग बन जाते हैं, इतिहास जीवित होकर हमारे सामने साकार हो उठता है। ऐसी यात्राओं द्वारा हम अपने इतिहास को सही दृष्टि से देखते है, अपनी शक्ति और निर्बलता को पहचानते हैं।

भारत की राजधानी

भारत एक प्राचीन देश है। इसकी संस्कृति पुरानी है, इतिहास भी पुराना है। यहाँ का प्रत्येक नगर, प्रत्येक ग्राम कोई न- कोई ऐतिहासिक कथा संजोए हुए है। प्रस्तुत निबंध में मैं दिल्ली की यात्रा का वर्णन करने जा रही हूँ। दिल्ली भारत की राजधानी है। भारत का ‘दिल’ है। यमुना के किनारे बसा यह नगर दो भागों में बंटा है – पुरानी दिल्ली तथा नई दिल्ली।

ऐतिहासिक महत्व

इतिहास की दृष्टि से पुरानी  दिल्ली का महत्व अधिक है जबकि नवीन शोखियों के कारण नई दिल्ली सभी के आकर्षण का केंद्र है। देश की राजधानी होने के कारण देश के सभी भागों से रेलगाड़ियाँ, बसें, विमान आदि यहाँ से आते – जाते हैं।

लाल किला

फरवरी मास में हमें अपने विद्यालय की ओर से दिल्ली की यात्रा के लिए ले जाया गया। हम दस छात्र थे हमारे साथ थे, हमारे इतिहास के अध्यापक ।हमने अपना समान क्लाक रूम में रखा और नास्ता करके हम लाल किला देखने चल पड़े। लाल पत्थर  का यह किला  शाहजहाँ ने बनवाया था- ऐसा माना जाता है। दिल्ली से पहले मुगलों की राजधानी आगरा थी। यह लाल किला मुगल वंश के इतिहास के साथ तो जुड़ा ही है, स्वतंत्र भारत के लिए भी इसका महत्व कम नहीं है।

चाँदनी चौक व कुतुबमीनार

लाल किले के सामने चाँदनी चौक है। यह भी मुगलों के समय का महत्वपूर्ण बाजार है। इसका महत्व अब भी कम नही हुआ है। यहाँ से हम बस में बैठकर कुतुबमीनार पहुँचे। बहुत – से – से इतिहासकारों का मत है कि कुतुबमीनार कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा निर्मित करवायी गई थी, किन्तु कुछ अन्य इतिहासकार इसे एक भारतीय सम्राट द्वारा निर्मित ध्रुवस्तभं मानते है।

उनके अनुसार इसका निर्माण ज्योतिष शास्त्र ेक नयमों के अनुसार नक्षत्रों और ग्रहों का अध्ययन करने के लिए करवाया गया था । वे इसका संबंध कुछ दूरी पर बनी जंतर मंतर नामक खुली वेधशाला से जोड़ते हैं जहाँ नक्षत्रों आदि की गति जानने के लिए था। काफी विशद प्रबंध किये गए हैं। जंतर – मतंर को देखकर हम अपने पूर्वजों की वैज्ञानिक दृष्टि पर आश्चर्यचकित रह गए।

राष्ट्रपति भवन

अब हम लोग संसद भवन, सचिवालय तथा राष्ट्रपति भवन देखने गए। सौभाग्य से राष्ट्रपति  भवन का मुगल – बाग दर्शकों के लिए खुला था । इन्हें केवल फरवरी मास में ही खोला जाता है। अंसख्य फूलों से भरे इस उपवन ने हमारे मन मोह लिए। सुंदर मोर यहां विचर रहे थे। लगभल एक घण्टा वहाँ रूकने के बाद हम होटल लौट आए।

राजघाट तथा शांति वन

कुछ देर आराम करने के पश्चात इस राजघाट तथा शांतु वन गए। यहाँ क्रमशः महात्मा गाँधी तथा जवाहरलाल नेहरू को श्रद्धांजलि अर्पित की। स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री की समाधि देखने विजयघाट भी गए। लौटते समय हम जामा मस्जिद भी गए। यहाँ से सभी लोग स्कूटरों पर बैठकर कनाट प्लेस चले। दिल्ली का सारा सौंदर्य शाम को यहाँ उमड़ आता है। यहाँ हमने टी हाउस में चाय पी। भीड़ को देखकर तो हम एकदम ही दंग रह गए। हम वहाँ अधिक देर नहीं ठहर सके, क्योंकि रात की गाड़ी से हमेंं लौटना भी था।

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