नमस्कार दोस्तों आज का मेरा पोस्ट हैं, नयी शिक्षा नीति। ( Nayi Sichha Neeti ) तो दोस्तों आप सब देख रहे है कि शिक्षा दिन पर दिन कितना बदल रहा है। आप सभी जानते होगें की नयी शिक्षा नीति अगर नही जानते हैे। तो आगें मैं आर्टिकल में लिखूँगी। आप लोग इस matra wale साइट पर आये इसमें हिन्दी की सारी निबन्ध उपलब्ध है।
तो दोस्तों नई शिक्षा लागू 1986 ई0 में लागू की गई थी। लेकिन सफल न होने पर वह अब भारत सरकार 29 जुलाई 2020 में घोषणा की है।
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प्रस्तावना
शिक्षा मानव – जीवन के सर्वांगीण विकास का सर्वोत्तम साधन है। प्राचीन शिक्षा – व्यवस्था मानव को उच्च – आदेर्शो की उपलब्धि के लिए अग्रसर करती थी और उसके वैयक्तिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन के सम्यक् विकास में सहायता करती थी। शिक्षा की यह व्यवस्था हर देश और काल में विकास में सहायता करती थी।
शिक्षा की यह व्यवस्था हर देश और काल में तत्कालीन सामाजिक – सांस्कृतिक जीवन – सन्दर्भों के अनुरूप बदलती रहनी चाहिए। भारत की वर्तमान शिक्षा- प्रणाली ब्रिटिश प्रतिरूप पर आधारित है, जिसे 1835 ई0 में लागू किया गया था। अंग्रेजी शासन की गलत शिक्षा – नीति के कारण ही हमारा देश स्वतन्त्रता के इतने वर्षों बाद भी पर्याप्त विकास नहीं कर सका।
अंग्रेजी शासन में शिक्षा की स्थिति
सन् 1835 ई0 में जब वर्तमान शिक्षा- प्रणाली की नींव रखी गयी थी तब लॉर्ड मैकाले ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि, ‘‘अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य भारत में प्रशासन को बिचौलियों की भूमिका निभाने तथा सरकारी कार्य के लिेए भारत के लोगों को तैयार करना है। इसके फलस्वरूप एक सदी तक अंग्रेजी शिक्षा – पद्धति के प्रयोग में लाने के बाद भी सन् 1935 ई0 में भारत साक्षरता के 10% के आँकड़े को भी पार नही कर सका।
स्वतन्त्रता – प्राप्ति के समय भी भारत की साक्षरता मात्र 13 प्रतिशत ही थी। इस शिक्षा प्रणाली ने उच्च वर्गों को भारत के शेष समाज से पृथक् रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इसकी बुराइयों को सर्वप्रथम गाँधी जी ने सन् 1917 ई0 में गुजरात एजुकेशन सोसाइटी के सम्मेलन में उजागर किया तथा शिक्षा में मातृभाषा के स्थान और हिन्दी के पक्ष को राष्ट्रीय स्तर पर तार्किक ढंग से रखा।
स्वतन्त्रता के पश्चात् की स्थिति
स्वतन्त्रता के पश्चात भारत में ब्रिटिशकालीन शिक्षा- पद्धति में परिवर्तन के कुछ प्रयास किये गये। इनमें सन् 1968 ई0 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति उल्लेखनीय है। सन् 1976 ई0 में भारतीय संविधान में संशोधन के द्वारा शिक्षा को समवर्ति – सूची में सम्मिलित किया गया, जिससे शिक्षा का एक राष्ट्रीय और एकात्मक स्वरूप विकसित किया जा सके।

इसके पश्चात् सन् 1986 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई। परन्तु यह भी पूर्ण सफल नहीं हो पाई। इसके पश्चात् भारत सरकार ने विद्यमान शैशिक व्यवस्था का पुनरावलोकन किया और राष्ट्रव्यापी विचार- विमर्श के बाद 29 जुलाई, सन् 2020 ई0 को नयी शिक्षा – नीति की घोषणा की।
शिक्षा – नीति का उद्देश्य
इस शिक्षा – नीति का गठन देश को इक्कीसवीं सदी की ओर लो जाने के नारे के अंगरूप में ही किया गया है। नये वातावरण में मानव संसाधन के विकास के लिेए नये प्रतिमानों तथा नये मानकों की आवश्यकता होगी। नये विचारों को रचनात्मक रूप में आत्मसात् करने में नयी पीढ़ी को सक्षम होना चाहिए। िसके लिए बेहतर शिक्षा की आवश्यकता है।
साथ ही नयी उच्चस्तरीय प्रशिक्षण प्राप्त श्रम – शक्ति को जुटाना है, क्योकि इस शिक्षा – नीति के आयोजकों के विचार से इस समय देश में विद्यमान श्रम – शक्ति यह आवश्यकता पूरी नहीं कर सकती।
नयी शिक्षा – नीति की विशेषताएँ
1. रोजगारपरक शिक्षा
विद्यालयों में शिक्षा रोजगारपरक होगी तथा विज्ञान और तकनीक उसके आधार होंगे। इससे विद्यार्थियों को बेरोजगारी का सामना नहीं करना पड़ेगा।
2. 5+3+3+4 का पुनर्विभाजन
विद्यालयों में शिक्षा 5+3+3+4 पद्धति पर आधारित होगी। त्रिभाषा फार्मूला चलेगा’ जिसमें अंग्रेजी, हिन्दी एवं मातृभाषा या एक अन्य प्रादेशिक भाषा रहेगी। सत्रार्द्रध प्रणाली ( सेमेस्टर सिस्टम ) माध्यमिक विद्यालयों में लागू की जाएगी और अंकों के स्थान पर विद्यार्थियों को ग्रेड दिये जाएँगे।
3. समान्तर प्रणाली
विद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक की एक समान्तर शिक्षा – प्रणाली शुरू की जाएगी।
4. अवलोकन – व्यवस्था
केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद शिक्षा- संस्थानों पर दृष्टि रखेगी। एक अखिल भारतीय शिक्षा सेवा संस्था का गठन होगा। माध्यमिक शिक्षा के लिए एक अलग संस्था गठित होगी।
5. उच्च शिक्षा में सुधार
अगले दशक में महाविद्यालयों से सम्बद्धता समाप्त करके उन्हें स्वायत्तशासी बनाया जाएगा। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षा का स्तर सुधारा जाएगा तथा शेष के उच्च स्तर पर बल दिया जाएगा।
6. आवश्यक सामग्री की व्यवस्था
प्राथमिक विद्यालयों में ‘ऑपरेशन ब्लैक-बोर्ड लागू होगा। इसके अन्तर्गत प्रत्येक विद्यालय, खेल का सामान तथा शिक्षा से सम्बन्धित अन्य साज- सज्जा उपलब्ध रहेगी। शिक्षा – मन्त्रालय ने प्रत्येक विद्यालय के लिए आवश्यक सामग्री की एक आकर्षक और प्रभावशाली सूची भी बनायी है। प्रत्येक कक्षा के लिए एक अध्यापक की व्यवस्था की गयी है।
7. मूल्यांकन और परीक्षा सुधार
हाईस्कूल स्तर तक किसी को भी अनुत्तीर्ण नही किया जाएगा। परीक्षा में अंकों के स्थान पर ‘ग्रेड प्रणाली’ प्रारम्भ की जाएगी। छात्रों की प्रगति का आकलन क्रमिक मूल्यांकन द्वारा होगा।
8. शिक्षकों को समान वेतनमान
देश भर में अध्यापकों को समान कार्य के लिए समान वेतन के आधार पर समान वेतन मिलेगा। प्रत्येक जिले में शिक्षकों के प्रशिक्षण – केन्द्र स्थापित किये जाएँगे।
उपसंहार
नयी शिक्षा नीति के परिपत्र में प्रत्येक पाँच वर्ष के अन्तराल पर शिक्षा – नीति के कार्यान्वयन और मानदण्डों की समीक्षा की व्यवस्था की गयी है, किन्तु सरकारों जल्दी – जल्दी हो रहे परिवर्तनों से इस नयी शिक्षा नीति से नवीन अपेक्षाओं और सुधारों की सम्भावनाओं में विशेष प्रगति नहीं हो पायी है।
साथ ही यह शिक्षा – नीति एक सुनियोजित व्यवस्थ, साधन सम्पन्नता और लगन की माँग करती है। यदि नयी शिक्षा – नीति को ईमानदारी और तत्परता से कार्यन्वित किया जाए तो निश्चय ही हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति की ओर बढ़ सकेंगे।