मेरे प्रिय बच्चों आज मैं कक्षा- 6 के स्टूडेन्ट के लिए निबन्ध Class 6 Hindi Essay Writing का पोस्ट लिखूँगी। जो बच्चों को निबन्ध – लिखने का सही तरीका सिखना चाहिए। निबन्ध कैसे लिखे, तो आज मैं इस पोस्ट में सबकुछ बताऊँगी। निबन्ध- लेखन Class-6 Hindi Essay Writing संबंधी जानने योग्य बातें, निबन्ध कितने प्रकार के होते है।
Table of Contents
निबन्ध – लेखन संबंधी जानने योग्य बातें-
- निबंध लिखने के लिए दो बातों की आवश्यकता है – भाषा और भाव।
- विषय – समाग्री को महत्व के आधार पर एक क्रम दिजिए। जो बात अधिक महत्वपूर्ण है, उसे पहले लिखिए।
- विषय की रूप-रेखा बनाकर उन्हें अलग-अलग अनुच्छेदों में बाँटकर लिखिए। एक अनुच्छेद में एक प्रकार की जानकरी होनी चाहिए।
- निबन्ध की भीषा- शैली बहुत महत्वपूर्ण होती है, अतः भाषा सरल, किन्तु प्रभावी होनी चाहिए। आवश्यकतानुसार सूक्तियाँ, दोहे तथा उद्धरणों का समावेश निबंध को और प्रभावी बना देती है।
- निबन्धों की शब्द- सीमा कक्षा के स्तर के अनुसार अलग- अलग होती है। आवश्यक विस्तार से बचना चाहिए।
निबन्ध मुख्यतः तीन भागों में बँटा होता है।
- भूमिका या प्रस्तावना 2. विस्तार 3. उपसंहार या निष्कर्ष
1. भूमिका या प्रस्तावना – इसमें अत्यंत संक्षेप में विषय का पूर्व- परिचय लिखा जाता है। इसमें जिज्ञासा या कौतूहल का अंश हो तो पाठक में आगे पढ़ने की जिज्ञासा जागती है। यह केवल एक अनुच्छेद में होनी चाहिए।
2. विस्तार – यह भाग एक से अधिक अनुच्छेदों में हो सकता है। विषय के सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं का समावेश इनमें क्रम से होना चाहिए। इस भाग से ही लेखक की क्षमता उजागर होती है।
3. उपसंहार या निष्कर्ष – यह भी भूमिका की भाँति एक अनुच्छेद में लिखना चाहिए। इसमें पूरें निबंध का सार या निचोड़ लिखना चाहिए। विषय के प्रतिपादन से जो निष्कर्ष निकले, वही ‘उपसंहार’ है। पाठक को इसे पढ़कर पूर्णता का आभास होना चाहिए।
- वर्षा ऋतु
भूमिका –
धरती जब तपने लगती है, तब आकाश में घुमड़ते बादल उसे सात्वना देने आ पहुँचते है। पशु – पक्षी, पेड़ – पौधे, मानव सब भीषण गरमी से परेशान होकर वर्षा ऋतु की प्रतीक्षा करते है। ऋतुओं की रानी वर्षा भी काले बादलों की चूनर में बिजली के सितारे टाँक कर और बूँदों की पायल छनकाती आ जाती है। अपने काले आँचल से दिन को भी रात बनाने वाली इस ऋतु में रात का दृश्य तो और भी अनूठा होता है।
विस्तार – आषाढ़ मास से प्रारंभ होकर सावन – भादों तक इस ऋतु का विस्तार रहता है। बादल छाते ही ठंडी -ठडी हवा बहने लगती है और और मन – प्राणों को प्रसन्नता से भर देती है। एक कोऩे से उठे बादल देखते – ही – देखते पूरे गगन को घेर लेते हैं। नन्हीं फुहारें धीरे – धीरे बौछारों और फिर मूसलाधार वर्षा का रूप ले लेत हैं।
वर्षा की फुहारों के आकर्षण में बँधे बच्चे घरों से निकलकर मैदानों और छतों पर निकल पड़ते हैं। बहते पानी को अंजुलि में भर-भरकर एक – दूसरे पर फेंकते हैं, पाँवों से छपाक – छपाक पानी उछालते हैं। बहती धारा में कागज की नाव तैराने का आनंद लेते हैं।
धूल से सने पेड़ – पौधे वर्षा की फुहारों से नहाकर तरोताजा हो जाते हैं। झूम – झूमकर मानो वर्षा रानी को धन्यवाद देते हैं। सूखे तालाव भर जाते है। नदियाँ किनारे तोड़कर बहने लगती है। चारों और पानी – ही – पानी, मानों प्रलय आ रही है। उत्पात मचाकर वर्षा रानी भी थक जाती है, और बादल – बिजली की सेना समेटकर चल देती है।
किसानों की प्रिय ऋतु है – वर्षा । उनके जीन का आधार ही यह ऋतु है। बड़ी आस से वें आकाश को ताकते रहते है और बादलों के छाते ही उनका मन – मयूर नाच उठता है। वे हल – बैल लेकर खेतों की और नकल पड़ते है। गीली धरती में उनका हल मिट्टी को आसानी से चीरता चलता है। बीजारोपण का काम प्रारंभ होता है। वर्षा ऋतु के जाते – जाते खेतों में नन्हें अंकुर पौधों का रूप ले लेते है। ग्रामीण महिलाएँ झूले की पींगे लेती हुई ‘कजरी गीत’ से वातावरण में अजीब – सा रहस्य घोल देती है।
उपसंहार – सही कहा गया है – जल ही जीवन है। जीवनदायिनी जल देने वाली वर्षा ऋतु का जड़ – चेतन सभी स्वागत करते है।
2. विद्यार्थी जीवन
भूमिका – महात्मा गाँधी कहा करते थे, ‘‘शिक्षा ही जीवन है।’’ इसेक समक्ष सभी धन फीके हैं। विद्या के बिना मनुष्य कंगाल बन जाता है, क्योंकि विद्या का प्राकाश ही जीवन को आलोकित करता है। विद्याध्ययन का समय बाल्यकाल से आरंभ होकर युवावस्था तक रहता है। यों तो मनुष्य जीवन भर कुछ – न – कुछ सीखता रहता है, किंतु नियमित अध्ययन के लिए यही अवस्था उपयुक्त है।
महत्वपूर्ण अवस्था – मनुष्य की उन्नति के लिए विद्यार्थी जीवन एक महत्वपूर्ण अवस्था है। इस काल में वे जो कुछ सीख पाते है, वह जीवन – पर्यन्त उनकी सहायता करता है। इसके अभाव में मनुष्य का विकास नही हो सकता जिस बालक को यह जीवन बिताने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ वह जीवन के वास्तविक सुख से वंचित रह जाता हैं।
तपस्या का जीवन – यह वह अवस्था है जिसमें अच्छे नागरिकों का निर्माण होता है। यह वह जीवन है जिसमें मनुष्य के मस्तिष्क और आत्मा के विकास का सूत्रपात होता है। यह वह अमूल्य समय है जो मानव जीवन में सभ्याता और संस्कृति का बीजारोपण करता है। इस जीवन की समता मानव जीवन का कोई अन्य भाग नहीं कर सकता है।
शारीरिक स्वस्थता – स्वस्थ शरीर में स्वस्थ आत्मा निवास करती है। अतएव आवश्यक है किय विद्यार्थी अपने अंगों का समुचित विकास करें। खेल – कूद, दौड़, व्यायाम आदि के द्वारा शरीर भी बलिष्ठ होता है और मनोंरजन के द्वारा मानसिक श्रम का बोझ भी उतर जाता हैं। खेल के नियम में स्वभाव और मानसिक प्रवृत्तियाँ भी सध जाती हैं।
महात्वाकांक्षा की भावना – महान् बनने के लिए महत्वाकांक्षा भी आवश्यक है। विद्यार्थी अपने लक्ष्म में तभी सफल हो सकता है। जब कि उसके हदय में महत्वाकांक्षा की भावना हो। ऊपर दृष्टि रखने पर मनुष्य ऊपर ही उठता जाता है। मनोरथ सिद्ध करने के लिए जो उद्योग किया जाता है, वहीं आनंद प्राप्ति का कारण बनता है। यही उद्योग वास्तव में जीवन का चिन्ह है।
उपसंहार – आज भारत के विद्यार्थी का स्तर गिर चुका है। उसके पास न सदाचार है न आत्मबल। इसका कारण विदेशियों द्वारा प्रचलित अनुपयोगी शिक्षा प्रणाली है। अभी तक भी उसी का अंधाधुध अनुकरण चल रहा है। जब तक इस सड़ी – गली विदेशी शिक्षा पद्धति को उखाड़ नहीं फेका जाता, तब तक न तो विद्यार्थी का जीवन ही आदर्श बन सकता है और न ही शिक्षा सर्वांगपूर्ण हो सकती है। इसलिए देश के भाग्य विधाताओँ को इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता हैं।
दशहरा –
भूमिका – हमारे त्योहारों का किसी – न – किसी ऋतु के साथ संबंध रहता है। विजयदशमी शरद ऋतु के प्रधान त्योहारों में से एक है। यह आश्विन मास की शुक्ला दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन श्रीराम ने लंकापति रावम पर विजय पाई थी। इसलिए इसको विजयदशमी कहते है। यह एक जातीय त्योहार है। इसको हिंदू ही नहीं बल्कि अन्य संप्रदाय वाले भी मनाते है। इसका संबंध विशेष रूप से क्षत्रियों से है।
लंका पर विजय – भगवान राम के वनवास के दिनों में रावण छल से सीता को हरकर ले गया था। राम ने हनुमान, सुग्रीव आदि मित्रों की सहायता से लंका पर आक्रमण किया तथा रावण को मारकर लंका पर विजय पाई। तभी से यह दिन मनाया जाता है।
धर्म की विजय का प्रतीक – वस्तुतः विजयदशमी का त्योहार पाप पर पुण्य की, अधर्म पर धर्म की, असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है। भगवान राम ने अत्याचारी और दूुराचारी रावण का विध्वंस कर भारतीय संस्कृति और उसकी महान् परंपराओं की पुनः प्रतिष्ठा स्थापित की थी।
शस्त्र पूजन – इसके अतिरिक्त इस दिन का और भी महत्व है। वर्षा ऋतु के कारण क्षत्रिय राजा तथा व्यापारी अपनी यात्रा स्थगित कर देते थे। क्षत्रिय अपने – अपने शास्त्रों को बंद करके रख देते थे और शरद ऋतु के आने पर निकालते थे। शस्त्रों की पूजा करते थे और उन्हें तेज करते थे। व्यापारी माल खरीदते थे और वर्षा ऋतु के अंत में बेचने को चल पड़ते थे। उपदेशक तथा साधु – महात्मा धर्म प्रचार के लिए अपनी यात्रा को निकल पड़ते थे।
झांकियाँ – दशहरा रामलीला का अंतिम दिन होता है। भिन्न – भिन्न स्थानों मे अलग – अलग प्रकार से यह दिन मनाया जाता है। बड़े – बड़े नगरों में रामायण के पात्रों की झांकियाँ निकाली जाती है। दिल्ली का दशहरा प्रसिध्द है। दशहरे के दिन रावण, कुंभकर्ण तथा मेघनाद के कागज के पुतले बनाए जाते है। सायंकाल के समय राम और रावण के दलों में कृत्रिम लड़ाई होती है। राम रावण को मार देते है। रावण आदि के पुतले जलाए जाते हैं। लोग मिठाइयाँ तथा खिलौने लेकर घरों को लौटते हैं।
आर्य सम्राज्य – दशहरा मनाने से हमें उस दिन की याद आती है जब राम ने विदेशों में अपनी संस्कृति का प्रसार किया था और लंका में आर्य साम्राज्य की नींव रखी था। रामचंद्र जी के समान पितृभक्त, लक्ष्मण के समान भ्रातृभक्त, सीता के समान पतिव्रता और धैर्यशील तथा हनुमान के समान स्वामिभक्त बनने की प्रेरणा मिलती हैं।
उपसंहार – इस दिन कुछ असंभ्य लोग शराब पीते है और लड़ते है। यह ठीक नहीं है। यदि ठीक ढंग से इस त्योहार को मनाया जाए तो आशातीत लाभ हो सकता है। राम के जीवन पर प्रकाश डालें। उस समय का इतिहास याद रखें। इस प्रकार दशहरा हमें उन गुणों को धारण करने का उपदेश देता है जो राम में विद्यामान थे।